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३८. पत्र: जे० सी० मुकर्जीको

[होटल सेसिल,
लन्दन]
अक्तूबर ३०, १९०६

प्रिय श्री मुकर्जी,

मैं समय देकर आपसे मिल नहीं सका, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ; लेकिन जैसा कि आप जानते हैं, मैं जिस कामसे यहाँ आया हूँ वही प्रधान है, और बाकी सब काम गौण हैं। उस दिन यह हुआ कि मुझे सर मंचरजीके साथ अपेक्षासे अधिक, ६ बजे शाम तक व्यस्त रहना पड़ा। क्या आप फिरसे कल नहीं आ सकेंगे? किन्तु वक्त ६ बजेका रखियेगा। मैं उस समय मिलनेकी पूरी कोशिश करूँगा। उसके बाद हम किसी उपाहारगृहमें चले जायेंगे। वहाँ भोजन करेंगे और वापस होटलमें आ जायेंगे। मैंने शामकी अन्य सब भेंट भी रद कर दी हैं, ताकि बोलकर लिखानेका जो काम पड़ा है उसे पूरा कर सकूँ। किन्तु आधा घण्टा हम रत्नम्की बात करेंगे। वैसे बहुत-सी चर्चा तो शायद भोजन करते-करते हो जायेगी। यदि मैं आपको वहाँ न मिलूँ तो भी मेहरबानी करके चले मत जाइये; क्योंकि अपने भोजनके लिए जरा आगे-पीछे मैं होटल पहुँचूँगा ही। जहाँतक इस समय अन्दाज लगा पाता हूँ, मुझे कल शामको ६ बजेके बाद कोई व्यस्तता नहीं रहेगी। प्रोफेसर साहबसे[१] भी मेरी क्षमा याचना निवेदन कीजिये। यह निमन्त्रण आपके और प्रोफेसर साहबके लिए है। अगर आप समझें कि रत्नम्का आना जरूरी है, तो उनको भी लेते आइए।

आपका शुभचिन्तक,

श्री जे० सी० मुकर्जी
६५, क्रॉमवेल ऐवेन्यू,
हाइगेट, एन०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४४१ ) से।

  1. प्रोफेसर परमानन्द