४. पंजीकृत माता-पिताओंकी सन्तानको पंजीयन नहीं कराना पड़ता था। ५. पंजीयन न करानेपर निर्वासनका विधान नहीं था। |
पंजीकृत मातापिताओंके सब बच्चोंका पंजीयन होना चाहिए; (क) आठ सालसे कम आयुके बच्चोंका पंजीयन अस्थायी रूपसे कराना होगा और माता-पिताओंको शिनाख्त करानी होगी। (आठ दिनके बच्चेको दसों अँगुलियोंके निशान देने होंगे और इसके लिए उसको पंजीयन अधिकारीके पास ले जाना होगा।) (ख) आठ सालसे अधिक आयुके बच्चोंका अलग पंजीयन कराना होगा और ऊपर जैसी शिनाख्त भी देनी होगी। (ग) यदि १६ वर्षकी आयु होनेपर बच्चोंका ऐसा पंजीयन नहीं होता है, तो पंजीयन न करानेपर उनको कड़ी सजा मिल सकती है और वे निर्वासित किये जा सकते हैं। (घ) जो एशियाई अनधिकृत रूपसे उप- निवेशमें १६ वर्षसे कम आयुके बालकको लायेगा उसको कड़ी सजा दी जा सकती है, उसका पंजीयन रद किया जा सकता है और उसको निर्वासित किया जा सकता है। (यह नियम सम्भवतः दुधमुँहे बच्चे लानेवाले माता-पिताओंपर लागू होता है और दूसरे एशियाई अधिवासियोंके बच्चोंको लानेवाले वैध एशियाई अधिवासियोंपर तो निश्चित रूपसे लागू होता है।) (ङ) जो एशियाई ऐसे बच्चेको (अनजाने भी!) नौकर रखेगा उसे भी वैसी ही सजा दी जा सकती है। (च) जो माता-पिता या संरक्षक (क) और (ख) नियमोंके अन्तर्गत आवेदन नहीं करेंगे वे १०० पौंड जुर्माने या ३ मासकी कैदकी सजाके भागी होंगे। पंजीयन न करानेपर निर्वासनका विधान है; भले ही उस एशियाईके पास अनुमतिपत्र और पंजीयनपत्र हों और इस प्रकार संशोधन अध्यादेशके अन्तर्गत उसे ट्रान्सवालकी वैध नागरिकताका दोहरा अधिकार प्राप्त हो। |
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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय