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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(ख) स्थानीय सरकारका विश्वास है कि भारतीय समाजकी ओरसे देशको अनधिकृत रूपसे आनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंसे भर देनेका एक संगठित प्रयत्न किया जा रहा है।

२५. इस बातसे इनकार नहीं किया जाता कि ऐसे भारतीय हैं जो ट्रान्सवालमें अनधिकृत रूपसे प्रवेश करनेका प्रयत्न करते हैं। इनका मुकाबला करनेके लिए वर्तमान कानून, जैसा कि ऊपर दिखाया गया है, सर्वथा पर्याप्त है। भारतीयोंने अनधिकृत प्रवेशकी बाढ़की बातका खण्डन बार-बार किया है और यह बात कभी सिद्ध भी नहीं हुई है। भारतीय समाज द्वारा प्रवेशके संगठित प्रयत्नका आरोप सरासर मनगढ़न्त है।

स्थानीय पूर्वग्रह

२६. कितने ही गोरे, खास तौरसे छोटे व्यापारी वर्गके लोग, पूर्वग्रह रखते हैं । यह बात मान ली गई है। साथ ही हम आदरपूर्वक यह भी कहेंगे कि गोरे लोगोंका सामान्य समुदाय उदासीन है। भारतीय व्यापारी थोक यूरोपीय पेढ़ियोंके और भारतीय फेरीदार सभी प्रकारके गोरे गृहस्थोंके सहयोगपर निर्भर हैं। दोनों ही इस सहयोगके बिना ट्रान्सवालमें जीवित नहीं रह सकते। हमारे इस तर्कका समर्थन उस प्रार्थनापत्रसे[१] है जो श्री हॉस्केन और प्रमुख पेढ़ियोंके दूसरे प्रतिनिधियोंने भारतीयोंकी ओरसे पेश किया था।

पूर्वग्रहको सन्तुष्ट करनेका उपाय

२७. किन्तु इस पूर्वग्रहको मानते हुए, भारतीय समाजने सदा ही केप या नेटालके ढंगपर प्रवासको प्रतिबन्धित करनेका सिद्धान्त स्वीकार किया है, बशर्ते कि सहायक और सेवक लानेकी अनुमति रहे। चूँकि व्यापारी ही शत्रुता और ईर्ष्याको उत्पन्न करते हैं, इसलिए भारतीय समाजने यह सिद्धान्त भी मान लिया है कि नगरपालिकाएँ नये व्यापारिक परवानोंका नियन्त्रण और नियमन करें; किन्तु जहाँ उनके निर्णय अत्यन्त अन्यायपूर्ण हों वहाँ सर्वोच्च न्यायालयको पुनर्विचारका अधिकार हो। यदि ये दो कानून मंजूर कर लिये जायें तो इनसे एशियाइयोंके अपरिमित प्रवेशका या व्यापारमें उनकी स्पर्धाका सब भय दूर हो जायेगा। किन्तु ऐसा जो भी कानून बनाया जाये उससे १८८५ के कानून ३ को रद करके यहाँके अधिवासी भारतीयोंको अचल सम्पत्तिके स्वामित्वका अधिकार फिर दिलाया जाये और चलने-फिरने और यात्रा की स्वतन्त्रता बहाल की जाये।

२८. अनुभव बताता है कि जहाँ-कहीं खास तौरसे कमजोर जातियोंपर लागू होनेवाला वर्ग-विधान बनाया गया वहाँ सदैव सत्ताका घोर दुरुपयोग हुआ है। परन्तु उपर्युक्त ढंगके कानूनमें, जो सबपर लागू होगा, इसकी कोई गुंजाइश नहीं रह जायेगी। इसके अलावा इससे श्री चेम्बरलेन

द्वारा उपनिवेशीय प्रधानमन्त्री सम्मेलनमें[२] निर्धारित और उसके बाद अमलसे पुष्ट नीति भी जारी रहेगी। इसी नीतिके कारण नेटाल विधान-सभाका पहला मताधिकार अपहरण विधेयक[३] और प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकका मसविदा[४] नामंजूर कर दिये गये थे जो खास तौरसे एशियाइयोंपर

  1. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३९१।
  2. देखिए, खण्ड २, पृष्ठ ३९१
  3. देखिए, खण्ड १, पृष्ठ ३६८ और खण्ड २, पृष्ठ ६३।
  4. देखिए खण्ड १, पृष्ठ २८८।