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५३. पत्र: जॉर्ज गॉडफ्रेको

होटल सेसिल
[लन्दन]
अक्तूबर ३१, १९०६

प्रिय जॉर्ज,

आपका निवेदनपत्र[१] इस पत्र के साथ भेजा जा रहा है। मुझे भरोसा है कि वह बहुत ही कारगर सिद्ध होगा। मैं उसकी छपाईके खर्चके बारेमें विचार कर रहा हूँ और सोचता हूँ कि यदि हस्ताक्षरकर्त्ता ही छपाईका खर्च उठायें तो यह काम अधिक शानदार होगा। जो-कुछ खर्च किया जाता है उसका पाई-पाई हिसाब मुझे संघको भेजना पड़ता है; ऐसी व्यक्तिगत अपीलका खर्च देना पड़े, इस विचार तक को मैं नापसन्द करता हूँ। इससे उसकी वास्तविकतामें बट्टा लगता है। छपाईका खर्च नगण्य होगा। मैं स्वयं उसे उठा सकता हूँ। श्री अली उसे उठा लेनेको तैयार हैं। लेकिन इनमें से किसी भी बातसे काम न चलेगा। आप लोग--पाँच-छ: मिलकर--इसे आपसमें ही बाँट लें। आप बात समझ जायेंगे, मैं सिद्धान्त समझाना चाहता हूँ। बात बहुत मामूली-सी है। लेकिन आपको इस योग्य होना चाहिए कि किसीके भी सामने आप मस्तक ऊँचा करके कह सकें कि हमने ही यह सारा खर्च उठाया है, क्योंकि हमने महसूस किया है। जो निवेदनपत्र मैंने तैयार किया है, उसे छपवाने में यदि लगे तो दो पौंड लगेंगे।

इस निवेदनपत्रको भेजनेमें विलम्ब न होना चाहिए। मैं तो यह चाहता हूँ कि आप तथा अन्य वे लोग जो इसमें आपका साथ देनेवाले हैं, स्वयं लोकसभामें जायें और वहाँ हमारे हितमें उन लोगोंका अनुमोदन निजी तौरसे प्राप्त करें तथा इस आवेदनपत्रकी छपी हुई प्रतियोंको बँटवानेके लिए व्यक्तिगत रूपसे प्रार्थना करें। इसी प्रकार आप लोग भिन्न-भिन्न सम्पादकोंसे भी मिलें। ये लोग आप लोगोंसे न मिलें तो कोई बात नहीं। ये हमारे उद्देश्यको क्षति नहीं पहुँचा सकते; और मिलते हैं, तो अच्छा ही है।

आपका शुभचिन्तक,

श्री जॉर्ज गॉडफे
लन्दन

टाइप की हुई अंग्रेजी दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४३३) से।

  1. हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ परामर्शके वाद लॉर्ड एलगिनको दिये जानेवाले आवेदनपत्रका यह मसविदा गाँधीजीने संशोधित कर दिया था। अन्तिम रूपके लिए देखिए "प्रार्थनापत्र: लॉर्ड एलगिनको", पृष्ठ ८४-८५।