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६०. चीनी राजदूतके लिए पत्रका मसविदा[१]

[अक्तूबर ३१, १९०६ के बाद]

प्रेषक

चीनके महामहिम सम्राट्के विशेष राजदूत
और सर्वाधिकार सम्पन्न मन्त्री
लन्दन
सेवामें
परमश्रेष्ठ सर एडवर्ड ग्रे
महामहिम ब्रिटिश सम्राट्के मुख्य विदेश मन्त्री

महोदय,

ट्रान्सवालमें रहनेवाले स्वतन्त्र चीनी प्रजाजनोंने उक्त उपनिवेशमें अपनी शिकायतोंके बारेमें, और विशेष रूपसे ट्रान्सवाल विधानपरिषद द्वारा पास किये गये २९ नवम्बरके उस अध्यादेशके सम्बन्धमें, जिसे 'एशियाई अधिनियम संशोधन अध्यादेश' कहा गया है, एक प्रार्थनापत्र मुझे भेजा है। उसका अविकल अनुवाद पत्रके साथ प्रेषित कर रहा हूँ। श्री एल० एम० जेम्सने मुझसे भेंट की। वे उपर्युक्त चीनी प्रजाजनों द्वारा उक्त प्रार्थनापत्रको व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत करने और उनका मामला मेरे सामने रखनेके लिए भेजे गये विशेष प्रतिनिधि हैं।

मुझे लगता है कि यदि प्रार्थनापत्रमें कही गई बातें सही हैं--और मैंने जो पूछताछ की है उससे तथा दक्षिण आफ्रिकाके मुख्य चीनी वाणिज्य दूतसे जो कुछ ज्ञात हुआ उससे मुझे इन वक्तव्योंके सही होनेमें सन्देह नहीं है--तो चीनी प्रजाजनोंकी शिकायत बहुत ठीक है। मुझे मालूम है कि प्रार्थनापत्रके अनुच्छेद ७ में जिन आपत्तिजनक बातोंका उल्लेख किया गया है वे स्वयं अध्यादेशमें नहीं हैं, परन्तु मुझे खबर मिली है कि ट्रान्सवाल सरकारका इरादा अँगुलियोंके निशानों और शिनाख्तकी दूसरी बातोंके लिए विनियम बनानेका है, यदि प्रार्थी इसपर रोष प्रकट करें तो वह ठीक ही होगा। इस प्रकारके विनियमोंकी बात छोड़ दें तो भी यह अध्यादेश निःसन्देह गम्भीर आपत्तिके योग्य जान पड़ता है और उसके कारण चीनी प्रजाजनोंको अनावश्यक कठिनाइयों, असुविधाओं और अपमानका सामना करना पड़ेगा।

आपका ध्यान में इस तथ्यकी ओर आकृष्ट करता हूँ कि महामहिम सम्राट् एडवर्ड सप्तम और चीनके सम्राट्के सम्बन्ध अत्यन्त मैत्रीपूर्ण हैं, और सम्पूर्ण चीनी साम्राज्य में ब्रिटिश प्रजाजनोंको ऐसे व्यवहारका अधिकार प्राप्त है जो परम कृपापात्र राष्ट्रोंके साथ किया जाता है।

इसलिए मैं भरोसा करता हूँ कि परमश्रेष्ठ ट्रान्सवालमें चीनी प्रजाजनोंको समुचित व्यवहार दिलाना उचित समझेंगे। मेरा खयाल है, कि ग्रेट ब्रिटेनके साथ मैत्रीमें आबद्ध एक स्वतन्त्र राष्ट्रके प्रजाजनोंके नाते वे इसके अधिकारी हैं।

परमश्रेष्ठका आज्ञाकारी सेवक,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४४१) से।

  1. इस आवेदनपत्रका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था। देखिए "पत्र: युक लिन ल्यूको", पृष्ठ २८ और "पत्र: हाजी वजीर अलीको", पृष्ठ ६२।