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६१. भेंट: 'साउथ आफ्रिका' को[१]

[लन्दन
नवम्बर १, १९०६]

'साउथ आफ्रिफा' के एक प्रतिनिधिसे बातचीत करते हुए ऐडवोकेट श्री गांधीने...कहा कि नेटाल भारतीय कांग्रेसने शिष्टमण्डलके उद्देश्योंसे सहानुभूति प्रकट करते हुए एक वैसा ही प्रस्ताव पास किया है जैसा अभी हालमें केपके ब्रिटिश भारतीयोंने पास किया था।

[गांधीजी:] नेटालके विषयमें कहते हुए मैं एक तारका[२] जिक्र कर दूँ जो मुझे मिला है। और जिसमें मुझसे अनुरोध किया गया है कि मैं श्री रैल्फ टैथम द्वारा नेटाल विधानमण्डल में पेश किये जानेवाले विधेयकसे सम्बन्धित प्रश्नोंको यहाँके अधिकारियोंके सामने रखूँ।

[संवाददाता :] भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार इस कानूनके विरुद्ध मुख्य आपत्तियाँ क्या हैं?

[गांधीजी:] अच्छा, मान लीजिए यह विधेयक कानून बन जाता है-- जिसकी मैं एक क्षणके लिए भी कल्पना नहीं कर सकता तो इसका विशुद्ध परिणाम यह होगा कि सैकड़ों भारतीय व्यापारी अपनी जीविकाके साधनसे वंचित हो जायेंगे। इसका अर्थ होगा कलमकी एक ही रगड़से निहित अधिकारोंका अन्त। डर्बनमें ७,००० की सूचीमें केवल २५० के लगभग और मैरित्सबर्ग में करीब ३,००० में ३१ के लगभग भारतीय मतदाता हैं और ये सभी व्यापारी ही तो नहीं हैं। इनमें से कुछ व्यवसायी हैं, और बहुत-से इस समय नेटालमें हैं ही नहीं। इसलिए अगर यह विधेयक पास होकर कानून बन जाये तो, डर्बन और मैरित्सबर्गसे भारतीय व्यापारियोंका नामोनिशान ही मिट जायेगा। इसके अतिरिक्त जहाँतक भविष्य में आनेवाले भारतीयोंका सम्बन्ध है, मताधिकार अधिनियमके कारण मतदाता सूची अब बन्द हो चुकी है, क्योंकि मताधिकार अधिनियम उन देशोंसे आनेवाले लोगोंके नाम सूचीमें दर्ज करनेपर प्रतिबिन्ध लगाता है जहाँ संसदीय संस्थाएँ नहीं है।

किन्तु परवानोंका मामला तो फिलहाल परवाना-अधिकारियोंके हाथों में है?

हाँ, यह ठीक है और ऐसी हालतमें इस प्रकारके विधेयकको पेश करनेका कारण मेरी समझमें नहीं आता। नेटालके वर्तमान विक्रेता परवाना अधिनियम के अनुसार परवाना देना-न-देना परवाना अधिकारियोंकी मर्जीपर छोड़ दिया है।

और मेरे खयालसे इस मर्जीका प्रयोग न्यायपूर्वक किया जाता है?

बिलकुल नहीं, बल्कि परवाना-अधिकारियोंने इस मर्जीका प्रयोग कभी-कभी अत्यन्त मनमाने ढंगसे किया है और सर्वोच्च न्यायालयसे कोई राहत नहीं मिल पाई है।

  1. यह ३-११-१९०६ के साउथ आफ्रिका में प्रकाशित किया गया और १५-१२-१९०६ के इंडियन ओपिनियन में इसका पुनः प्रकाशन हुआ।
  2. देखिए "पत्र: लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको", पृष्ठ ७६ ।