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मुलाकात: 'साउथ आफ्रिका' को


क्या आप कोई विशेष उदाहरण दे सकते हैं, श्री गांधी?

निश्चय ही दे सकता हूँ। फ्राइहीडमें एकमात्र भारतीय व्यापारी दादा उस्मान व्यापार करनेके परवाने से वंचित कर दिये गये, यद्यपि वे अपनी भूमिपर व्यापार करते थे और बोअरशासनमें[१] भी ऐसा बहुत समय तक करते रहे थे। यदि फ्राइहीड ट्रान्सवालमें ही रह जाता, तो दादा उस्मान आज भी व्यापार करते होते; किन्तु चूंकि फ्राइहीडको नेटालमें मिला दिया गया है और ट्रान्सवालका एशियाई-विरोधी कानून वहाँ बरकरार है इसलिए भारतीयोंके विरुद्ध दुहरे कानून लागू हैं। इनमें से, जहाँतक भारतीय व्यापारियोंको परवाने देनेका सम्बन्ध है, नेटालका कानून ज्यादा कड़ा है।

इसका श्री उस्मानपर क्या प्रभाव पड़ता है?

इसका परिणाम यह हुआ है कि ट्रान्सवाल कानूनके अनुसार वे फ्राइहीडमें भूसम्पत्ति नहीं रख सकते; और नेटाल कानूनके कारण वे अपने व्यापारके लिए परवाना-अधिकारीकी दयापर निर्भर हैं। अतएव, उन्हें उस जिलेको बिलकुल छोड़ ही देना पड़ा है।

क्या यह एक अपवादका मामला नहीं है, जो फ्राइहीडकी विशेष परिस्थितियोंसे उठ खड़ा हुआ है?

बात ऐसी नहीं है। डर्बनके परवाना-अधिकारीने रेशमी वस्त्रोंके प्रसिद्ध भारतीय व्यापारीके परवानेको एक व्यवसाय केन्द्रसे दूसरे के लिए बदलने से इनकार कर दिया, यद्यपि उक्त व्यापारी बहुत दिनोंसे यह धंधा कर रहा है और यूरोपीय व्यापारसे उसकी दूकानकी कोई स्पर्धा नहीं है।[२] मुझे लगता है कि वास्तवमें श्री टैथमका विधेयक अनावश्यक है, और वह दरअसल नेटालसे भारतीयोंको बिलकुल निकाल बाहर करनेका प्रयास ही है।

किन्तु आप जानते हैं नेटालमें भारतीयोंके विरुद्ध एक प्रबल विद्वेष उभर रहा है?

मैं यह नहीं समझ पाता कि ऐसी कोई भावना क्यों होनी चाहिए। नेटालपर भारतीयोंका तिहरा आभार है। एक तो यह है कि उसकी समृद्धिका कारण भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंका वहाँ होना है; दूसरे, नेटालके भारतीयोंने ही बोअर-युद्धके[३] समय १,००० से अधिक भारतीयोंका एक आहत-सहायक दल खड़ा किया था जिसके कामका उल्लेख जनरल बुलरके खरीतोंमें विशेष रूपसे किया गया था; और तीसरे, यह कि अभी हालके वतनी-विद्रोहमें भारतीयोंने नागरिकोंके नाते अपना कर्तव्य समझकर तथा अपने राजनीतिक विचारोंका कतई कोई खयाल न करके सरकारको एक भारतीय डोलीवाहक दलकी[४] सेवाएँ अर्पित की थीं। इस दलकी सेवाओंको सर हेनरी मैक्कैलमने बहुत सराहा है।

एक क्षणके लिए ट्रान्सवाल अध्यादेशके प्रश्नपर वापस आते हुए हमारे प्रतिनिधिने श्री गांधीको बताया कि कानूनमें कोई ऐसी बात नहीं है जिससे भारतीयों की शिनाख्त अँगुलियोंके निशानोंसे करना जरूरी हो।

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १२७-२८।
  2. हुंडामलका मामला; देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३८५-८६ ।
  3. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १४७५२ ।
  4. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ३७३ और ३७८-८३ ।