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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

या यहूदी धर्मोके अलावा दूसरे धर्मोंको नहीं दी जाती है, इसलिए मैं आपको माँगी हुई विशेष सुविधाएँ देनेमें असमर्थ हूँ।

इसपर स्वयं मुख्य यातायात प्रबन्धकके हस्ताक्षर हैं। इससे, हमारी सम्मतिमें, न्यायपूर्ण व्यवहारकी, जिसका वचन जनरल बोथाने दिया था, सब आशाएँ समाप्त हो जाती हैं। इस पत्रसे यह शेखी भी खत्म हो जाती है कि साम्राज्यके भीतर कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है। दुर्भाग्यसे हम जाति-भेदके तो अभ्यस्त हो गये हैं। किन्तु एशियाई अधिनियमने एक धार्मिक भेदभाव करके पहल की है और रेलवे विभागने उनका अनुसरण किया है। ट्रान्सवालमें रहनेके इच्छुक भारतीय जानते हैं कि उन्हें अधिकारियोंसे क्या आशा रखनी है। हमारी समझमें नहीं आता कि जिन लोगोंका आधार ही धर्म है और जो-हिन्दू और मुसलमान दोनों―अपने धर्मपर आक्रमण होते ही विचलित हो उठते हैं, उन लोगोंकी धार्मिक भावनाओंके अकारण अपमानके इस नवीनतम उदाहरणका लॉर्ड एलगिन क्या औचित्य बतायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७

५१. एक टेक

माननीय अमीर 'महाविभव' से 'महामहिम'[१] सहज ही नहीं बन गये। उन्होंने सच्ची टेक रखी तब प्रतिष्ठा मिली और अंग्रेजोंने उनका स्वागत किया। वे भारतकी यात्रापर इस शर्तपर आये थे कि उनकी प्रतिष्ठाकी पूरी तरहसे रक्षा की जायेगी और सरकार कोई राजकीय विषय नहीं छेड़ेगी। उन्हें लॉर्ड कर्जनने' भी आनेका निमन्त्रण दिया था, किन्तु उन्होंने साफ इनकार कर दिया था। उसका कारण श्री मॉर्लेने अपने बजटभाषणमें दिया है। काबुलमें भाषण करते समय उन्होंने कहा: “इस समय भारत सरकारके अधिकारियोंने राजकीय विषयकी कोई बात नहीं छेड़ी। उन्होंने अपना वचन निभाया। इसलिए जब मेरी इच्छा हुई तब मैंने खुद होकर इस सम्बन्धमें बातचीत की। उसका उन्होंने दुरुपयोग नहीं किया। लॉर्ड मिंटोका निमन्त्रण सभ्यतापूर्ण था, इसलिए मैंने उसे स्वीकार किया। दिल्ली दरबारके समय दिये गये आमन्त्रण और लॉर्ड मिंटोके आमन्त्रणमें बड़ा भेद था। इसीलिए मैंने दिल्ली दरबारमें न जानेका निश्चय किया था। मैंने सोचा था कि इतना बेहूदा आमन्त्रण स्वीकार करनेकी अपेक्षा मेरा राजपाट चला जाये, मैं भिखारी बन जाऊँ, मुझे प्राण देने पड़ें, यह सब सहन करनेको तैयार हूँ।" अपनी इसी टेकके कारण अमीरको मान मिला और लॉर्ड कर्जनको पीछे हटना पड़ा।

[२]देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ५०५।

[३] (१८५९-१९२५); भारतके वाइसराय और गवर्नर जनरल, १८९९-१९०५: देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ५०।

[४] (१८३८-१९२३); भारत-मन्त्री, १९०५-१०।

[५] (१८४५-१९१४); भारतके वाइसराय और गवर्नर जनरल, १९०५-२०।

  1. १.
  2. १.
  3. २.
  4. ३.
  5. ४.