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आगमें घी

आना चाहे तो उसको अवश्य ही अपना और अपने अवयस्क बच्चोंका पंजीयन प्रमाणपत्र लेना होगा और यदि वह वर्जित प्रवासीकी श्रेणीमें आना और निष्कासित होना न चाहे तो उसके आठ सालसे अधिक आयुके जो बच्चे हों उन्हें भी अलग-अलग और एक साथ अँगुलियोंके निशान देने पड़ेंगे। कहा यह जाता है कि पंजीयन अधिनियम सिर्फ शिनाख्ती कार्रवाईके लिए है। एशियाई अधिनियम न होनेपर जो व्यक्ति अपनी शिक्षा-सम्बन्धी योग्यताके कारण ट्रान्सवालमें रहने के अधिकारका दावा कर सकता है, उसकी शिनाख्त करानेका क्या कोई अर्थ है? वह चाहे उपनिवेशमें हो चाहे उसके बाहर, उसके किसी एक भाषाके ज्ञानकी परीक्षा किसी भी समय की जा सकती है। तब क्या उसकी शिनाख्तके निशान उसके व्यक्तित्वमें ही समाहित नहीं हैं?

जनरल बोथाने तो, जब वे लन्दनमें थे, सारे साम्राज्यके कल्याणकी इतनी चिन्ता प्रकट की थी और लॉर्ड ऐम्टहिलको आश्वासन दिया था कि सम्राट्की भारतीय प्रजाको नीचा दिखानेका उनका कोई इरादा नहीं है। उनके उन भाषणोंका' क्या हुआ? क्या स्वशासनका अर्थ एशियाइयोंकी समस्त स्वतन्त्रताके मनमाने अपहरणका परवाना है? सर जॉर्ज फेरारने प्रगतिवादी दलकी ओरसे बोलते हुए कहा था कि एशियाई पंजीयन अधिनियमके पीछे बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है, इसकी स्वीकृतिसे लाखों भारतीय अकारण ब्रिटिश साम्राज्यके विरुद्ध उत्तेजित हो जायेंगे। फिर भी उन्होंने सरकारको सहायताके लिए, बहत ही बेमौके, सम्राट एडवर्डकी भारतीय प्रजाकी भावनाओंको चोट पहुँचानेकी जोखिम उठाकर भी, एशियाई पंजीयन अधिनियमका समर्थन किया। क्या प्रगतिवादी दल अपनी साम्राज्य-हितकी डींगोंके बावजूद मेरे द्वारा बताई गई घृणित धाराके रहते हुए इस प्रवासविधेयकका समर्थन करेगा?

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
स्टार, ५-७-१९०७

५०. आगमें घी

प्रिटोरियाकी आम सभाकी कार्रवाईका विवरण भेजते हुए हमारे प्रिटोरियाके संवाददाताने लिखा है कि मौलवी मुख्तियार अहमद द्वारा मध्य दक्षिण आफ्रिका रेलवे (सी० एस० ए० आर०) का एक पत्र पेश किया जानेपर बहुत सनसनी फैली। उस पत्रको हम एक बहुत जरूरी प्रलेख मानते हैं। वह इस तरह है:

आपके २४ तारीखके पत्रके उत्तरमें, जिसमें ट्रान्सवालके मुस्लिम समाजको धार्मिक आवश्यकताओंकी पूर्ति करनेवाले एक मुल्लाके यात्रा-सम्बन्धी खर्चका जिक्र है, मैं कहना चाहता हूँ कि चूंकि इस रेलवेमें धर्म-प्रचारकोंको दी जानेवाली रियायत ईसाई

[१] देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४६०-६१, ४८३।

[२] देखिए पत्र: रैड डेली मेल' को", पृष्ठ ६७-६८।

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