५२. समितिकी सलाह
समितिके पाससे ट्रान्सवालके सम्बन्धमें आया हुआ तार हम प्रकाशित कर चुके हैं।' श्री रिचके पत्रसे समझमें आ सकता है कि समितिके तारसे हमें जरा भी डरना नहीं है। समिति हमें बहत भला-बुरा कहे तब भी जेलके सम्बन्ध में हमने जो बहत ही सोच-समझकर निर्णय किया है उससे पीछे पैर नहीं रखा जा सकता। साहस करनेवालेको दूसरे की सीख काम नहीं देती।
डॉ० जेमिसनने टान्सवालपर हमला किया तब किसीसे सीख नहीं ली थी। हमलेको तो लोग भूल गये, किन्तु उनकी बहादुरीको आज भी प्रशंसा की जाती है। वे स्वयं इस समय बोथाके मित्र हैं और केपका कारोबार चला रहे हैं।
इंग्लैंडके प्रधान मन्त्री सर हेनरी कैम्बेल बेनरमैनने बहुत ही विनयपूर्वक अंग्रेज महिलाओंको सलाह दी थी कि वे अपनी जेल जानेकी बात छोड़ दें। इन महिलाओंमें जनरल फ्रेंचकी बूढ़ी बहन भी है। किन्तु उन बहादुर महिलाओंने उस बुद्धिमानीकी सीखको माननेसे इनकार कर दिया। मताधिकारके अभावमें उन्हें जो वेदना हो रही है उसे सर हेनरी क्या समझ सकते हैं? जब बहादुर अंग्रेज महिलाएं अपने नये अधिकार प्राप्त करनेकी लड़ाई किसीकी सीखकी परवाह किये बिना लड़ रही है, तब क्या भारतीय मर्द अपने जाते हुए हकोंकोअपनी स्वतन्त्रताको रक्षाकी लड़ाईको भले कोई समिति या कोई महापुरुष सीख दे, छोड़ दें?
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७
५३. कैसी दशा!
यदि ट्रान्सवालपर बादल छाये हैं तो नेटाल छूट जायेगा, सो बात नहीं। गोरोंकी कालोंपर चढ़ाई होती ही रहती है। अब नेटालकी संसदमें ऐसा विधेयक पेश हुआ है कि अपनी जमीन स्वयं जोतनेवाला भारतीय अगर वह जमीन किसी दूसरे भारतीय या काफिरको जोतनेके लिए दे तो उसे उस जमीनपर गोरोंकी अपेक्षा दुगुना कर देना होगा। ऐसा इन्साफ तो दक्षिण आफ्रिकाके गोरे ही कर सकते हैं। परन्तु गिरे हुएको ठोकर मारनेका रिवाज तो सदासे चलता आया है। इसलिए गिरे हुए भारतीय उठेंगे तभी उनके दुःख मिटेंगे। कांग्रेसको लिखा-पढ़ी आदि तो करनी ही होगी।
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७
[१] देखिए “जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ५६-६०।
[२]१९०५-८।
[३] देखिए, खण्ड ६, पृष्ट ३५४।