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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शेरको सामने बिठाकर खीर खिलानेके समान है। प्रौढ़ भारतीय भी अधिकारीके सामने घबरा जाते है तब दुबले-पतले बालककी तो बात ही क्या की जाये।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७
 

५६.प्रिटोरियाकी आम सभा[१]

नया कानून पहली जुलाईसे प्रिटोरियामें अमलमें आनेवाला था। इसलिए वहाँ रविवार, ३० जूनको एक विराट् आम सभा की गई थी। वहाँ जोहानिसबर्गसे खास-खास भारतीय अपने खर्चसे गये थे। उनमें कार्यवाहक अध्यक्ष श्री ईसप मियाँ, मौलवी साहब अहमद मुख्त्यार, श्री एम० एस० कुवाडिया, श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री उमरजी साले, श्री मकनजी, श्री झोणाभाई, श्री गुलाबभाई कीकाभाई, श्री मोरारजी देसाई, श्री गुलाबभाई पटेल, श्री भूला, श्री रणछोड़ नीछाभाई, श्री नादिरशाह कामा, श्री मुहम्मद इशाक, श्री खुशाल, श्री पीटर मूनलाइट, श्री नायडू, श्री ए० एस० पिल्ले, श्री गांधी वगैरह थे। प्रिटोरियाके लोगोंमें श्री हाजी हबीबके अलावा वहाँकी मसजिदके मौलवी साहब, श्री हाजी कासिम जूसब, श्री हाजी उस्मान, श्री काछलिया, श्री अली, श्री हाजी इब्राहीम, श्री गौरीशंकर व्यास, श्री प्रभाशंकर जोशी, श्री मोहनलाल जोशी, श्री उमरजी वगैरह, कुल मिलाकर चार सौ भारतीय थे।

जोहानिसबर्गके प्रतिनिधियोंके खाने-पीने, ठहरने आदिको व्यवस्था श्री हाजी हबीब और श्री व्यासने की थी।

सभा ठीक तीन बजे शुरू होकर शामके सात बजे तक चलती रही थी। श्री हाजी हबीबने सबका स्वागत करते हुए कहा कि नया कानून अत्यन्त ही अत्याचारपूर्ण है। जबतक वह प्रकाशित नहीं हुआ था तबतक तो लगता था कि यदि उसकी धाराएँ ढंगकी हों तो उसे स्वीकार भी किया जा सकता है। किन्तु धाराओंको देखनेके बाद तो यही लगा कि कानूनको कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारतीय समाजको एकताके साथ कानूनका विरोध करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने श्री ईसप मियाँसे सभापतिका आसन ग्रहण करनेका निवेदन किया।

श्री ईसप मियाँने श्री हाजी हवीबका उपकार माना कि उन्होंने अपना मकान दिया। उन्होंने कहा कि कानन जहरी है। वह हमसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। मैं स्वयं अपना काम छोड़कर समाजकी सेवा करनेको तैयार हूँ। सभी भाइयोंको हिलमिलकर रहना है। आज तक हम झुकते आये है। किन्तु, अब वैसा नहीं हो सकता। दुनिया में माँका नाम कोई नहीं पूछता। केवल कयामतके दिन ही हमारा माँके नामसे परिचय दिया जायेगा। अब सरकार हमसे माँका नाम पूछनेवाली है। भारतीय समाज इस तरहकी गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेगा।

श्री गांधीने यह समझाया कि कानूनका क्या असर होगा, और कहा कि हर भारतीयको—फिर वह गरीब हो या अमीर—स्वतन्त्र होना चाहिए। [साम्राज्य] सरकारने इस कानूनको

[२] मूल गुजराती रिपोर्ट "इंडियन ओपिनियन के लिए विशेष विवरण"के रूपमें इन शीर्षकोंसे छपी थी, "प्रिटोरियाके भारतीयोंकी विराटू आम सभा: खूनी कानूनका जोरदार विरोध: सब जेलके लिए तैयार।"

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