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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१११

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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

कमसे-कम ६,००० व्यक्ति नया पंजीयनपत्र लेनेसे इनकार करेंगे। यदि सरकार उनपर मुकदमा चलायेगी तो वे लोग जेल जायेंगे, भले उससे उन्हें नुकसान उठाना पड़े। लेकिन वे स्वाभिमानके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेको तत्पर हैं। हमें लगता है कि जब हमारे सम्बन्धमें कानून बनानेमें हमें बोलनेका अधिकार नहीं है, तब हमारे लिए एक ही उपाय शेष रह जाता है कि किसी भी कानूनके सामने घुटने न टेके जायें। कहा गया है कि कानून नरम है। किन्तु मुझे कहना चाहिए कि मैने बहतेरे उपनिवेशोंके कानून पढ़े हैं, लेकिन एक भी उपनिवेशमें इस कानूनके समान अपमानजनक और कलंकित करनेवाला कानून नहीं देखा। एम्पायर नाटकघरवाली सभामें दो हजारके लगभग लोग उपस्थित थे और उन सबने सर्वसम्मतिसे शपथ ली थी कि वे कभी भी अनिवार्य पंजीयन नहीं करवायेंगे। मुझे आशा है कि लोग उस शपथका अवश्य पालन करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७

५८. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

नया कानून

बहुत समयसे भारतीय जिनका रास्ता देख रहे थे वे नियम प्रकाशित हो गये हैं। "जैसा बाप वैसा बेटा, जैसा बड़, वैसी जड़", इस कहावतके अनुसार जैसा कानून है वैसे ही उसके नियम है। जो लोग नियमोंमें कुछ नरमीकी आशा रखते थे, उनकी वह आशा भंग हो गई है। मैं स्वयं इसलिए बहुत खुश हूँ कि नियम अनपेक्षित रूपमें सख्त है। इससे प्रत्येक भारतीय दढ़ हो गया है और अब तो सब कहने लगे हैं कि जेलके बिना चारा नहीं है।

घासमें साँप

अंग्रेजीमें कहावत है कि हरी घासमें प्रायः हरे साँप होते हैं, जो दिखाई नहीं देते। वे काटते हैं तभी उनकी उपस्थितिका ज्ञान होता है। यह कानून भी वैसा ही है। इसमें कुछ साँप छिपे हुए थे, जिनका पता मुझे अभी लगा है। इन नियमोंको मैंने पहले भी पढ़ा था। उस वक्त मुझे इसके कुछ प्रभावोंका ज्ञान नहीं हो सका था। मैं समझता था कि जबतक नया अनुमति-पत्र—गुलामीका पट्टा—नहीं लिया जाता तबतक किसीसे पूछताछ करना सम्भव नहीं है। अब विचार करनेपर देखता हूँ कि इसमें पुलिसको जो सत्ता दी गई है उसके अनुसार वह चाहे जिस भारतीयसे अँगुलियोंकी निशानी मांग सकती है और उसकी वंशावली पूछ सकती है, और वह भी जितनी बार चाहे उतनी बार। इस साँपसे डरकर चलना है। और यदि सरकारने उस चाबीको ऐठा तो उससे भारतीय समाज शायद परेशान हो जायेगा। रास्ता सीधा है। किसी भारतीयको किसी भी तरह अँगुलियोंकी निशानी देनी ही नहीं है। इतने दिन अँगूठा लगाते रहे। किन्तु अँगूठा लगाना भी अनिवार्य हो गया है, इसलिए उसे लगानेसे भी इनकार कर देना चाहिए। इसका नतीजा क्या होगा? उत्तर है