पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५९. पत्र: ‘रैड डेली मेल’ को

जोहानिसबर्ग,
जुलाई ६, १९०७

सेवामें

सम्पादक

[‘रैड डेली मेल’]
महोदय,

में विश्वास करता हूँ, एशियाई प्रश्नकी पुनः चर्चा करनेके लिए मुझे क्षमा-याचनाकी आवश्यकता नहीं है।

मैंने आपके भेंटकर्तासे यह नहीं कहा था कि "अनाक्रामक प्रतिरोध" मेरे देशवासियोंके लिए एक नया मार्ग है। मैंने यह कहा था कि हमें पीढ़ियोंसे, खास तौरसे बड़े पैमानेपर, इसका अभ्यास नहीं रहा है, इसलिए मैं इसके परिणामके सम्बन्धमें पहलेसे कुछ नहीं कह सकता। मुझे, व्यक्तिगत रूपमें, यह देखकर गर्व होता है कि सामूहिक हितके लिए कष्ट-सहनकी क्षमता केवल सुप्त पड़ी थी और परिस्थितियोंके दबावसे वह पुनः शीघ्रतासे क्रियाशील होती जा रही है। धरना भारतीय मानसके लिए कतई नई वस्तु नहीं है। भारतमें विभिन्न जातियोंका जो जाल फैला हुआ है वह इस अस्त्रका उपयोग और मूल्य प्रदर्शित करनेवाला है, बशर्ते कि उसका उचित उपयोग किया जाये। आज भी सामाजिक बहिष्कार और जातीय बहिष्कार दो बहुत शक्तिशाली अस्त्रोंका प्रयोग भारतमें किया जाता है, किन्तु दुर्भाग्यवश छोटे-मोटे मामलोंमें ही। और यदि अब पंजीयन-अधिनियमके कारण मेरे देशवासी इस भयंकर अस्त्रका प्रयोग एक ऊचे उद्देश्यके लिए करना जान सकेग तो लॉडे एलगिन और ट्रान्सवालकी सरकार दोनों ही मेरे देशवासियोंकी कृतज्ञताके पात्र होंगे।

इसलिए भारतीय धरनेदार असाधारण (उनके लिए असाधारण) आत्मत्याग और साहस दिखाकर अपने अज्ञानी और निर्बल देश-बन्धुओंको कर्तव्य-पथ दिखानेका प्रयत्न कर रहे है तो, सचमुच, इसमें कोई अनोखापन नहीं है। इसके साथ ही, आज पश्चिमी और पूर्वी, या यों कहिए कि भारतीय धरनेदारोंमें, उतना ही अन्तर है जितना प्रकटतः पूर्व और पश्चिममें है। आतंक फैलानेकी हमारी कोई इच्छा नहीं है। हम बहुमतकी इच्छा जबरदस्ती मनवाना नहीं चाहते; किन्तु मुक्ति-सेनाकी अदम्य बालाओंकी भाँति, अपने नम्रतापूर्ण ढंगसे, समझाने

[१] यह "भारतीयोंका धरना" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था, और १३-७-१९०७ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था।

[२]देखिए “भेंट: रैंड डेली मेल" को", पृष्ठ ६०-६१।

[३]सन् १८६५ में विलियम बूथ द्वारा लन्दनमें स्थापित एफ धार्मिक संगठन, जिसे “साल्वेशन आर्मी" कहा जाता था। बादमें संगठनने अर्ध-सैनिक रूप ले लिया था। मूलत: यह ईसाई धर्मके सिद्धान्तोंसे सहमत था, लेकिन इसके उपदेश-आदेश व्यावहारिक और सीधे-सादे होते थे। उनमें दूसरोंकी मुक्तिके लिए कष्ट-सहन तथा आत्मबलिदानपर जोर दिया जाता था।

  1. १.
  2. २.
  3. ३.