यदि ऐसा होना हो तो "लेने गई पूत, खो आई भरतार" वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी। यह समय नेता या किसी दूसरेपर निर्भर रहनेका नहीं है। सबको अपनी-अपनी हिम्मतपर निर्भर रहना है। इस मामलेमें वकील या किसी औरका काम भी नहीं है। हम सब होलीमें पड़े हुए हैं। वहाँ हमें एक-दूसरेकी ओर नहीं देखना है। मैंने सुना है कि कुछ ही दिनोंमें श्री गांधीको गिरफ्तार किया जायेगा और सम्भव है, नेताओंमें से भी किसी एकको। यदि ऐसा हो तो लोगोंको घबड़ानेके बजाय खुश होना चाहिए और उनके जेल जानेसे लोगोंको ज्यादा हिम्मत आनी चाहिए। हकीकत यह है कि अब हम भेड़ नहीं, बल्कि स्वतन्त्र हैं और किसीपर निर्भर नहीं रहना चाहते। जेल डरकी चीज नहीं है, यह जब मनमें समा जायेगा तभी मामला मुकामपर आयेगा। सबकी ढाल एक खुदा है; और उस ढालको लेकर रणमें जूझना है, यही सबको मनमें रखना चाहिए।
"दूसरे लेंगे तो मैं लूँगा"
बहुतेरे गोरे भारतीयोंको सीख देने लगे हैं। वे पूछते हैं आप क्या करेंगे? उत्तरमें बहुत-से भारतीय कहते हैं—" हमारे नेता जैसा करेंगे वैसा हम करेंगे।" कोई कहते हैं—"दूसरे करेंगे वैसा करेंगे"। ये शब्द कायरोंके है और इसलिए इनसे नुकसान है। सभी लोगोंको यह उत्तर देना चाहिए कि “मुझे कानून पसन्द नहीं है, इसलिए मैं इसे कभी स्वीकार नहीं करूँगा। मैंने खुदाकी शपथ ली है, इसलिए भी इसे स्वीकार नहीं करूंगा। यह कानून मुझे गुलाम बनाता है, इसलिए उसके बजाय मैं जेलको ज्यादा अच्छा मानता हूँ।" जो ऐसा उत्तर नहीं दे सकता वह आखिर पार भी नहीं हो सकता। दूसरेके तबके सहारे पार नहीं हुआ जाता। अपने बलपर पार होना है। मैं धूल खाऊँ तो क्या पाठक भी खायेंगे? मैं गड़हेमें गिरूँ तो क्या पाठक भी उसमें गिरेंगे? मैं अपना धर्म छोड़ूँ तो क्या पाठक भी छोड़ देंगे? मैं अपनी माँका अपमान सहन करूँ, अपने लड़केको चोर बनाऊँ और अपनी तथा अपने लड़केकी अँगुलियाँ काटकर दूं तो क्या पाठक भी वैसा करेंगे? सभी यही कहेंगे कि कभी नहीं। वैसा ही जोश रखकर उत्तर देना है कि "दूसरे क्या करते हैं, इसकी परवाह नहीं। हम तो कानूनके सामने घुटने बिलकुल नहीं टेकेंगे।" इतना सीधा और स्पष्ट उत्तर सब नहीं देते, इसीलिए अखबार इस प्रकारकी टीका करते हैं कि हम आज तो उत्साह दिखा रहे है किन्तु आखिर घुटने टेक देंगे। इन सब बातोंपर प्रत्येकको विचार करना चाहिए। यह समय डरका नहीं है, न कुछ छिपानेका है। हमें न कुछ छिपाकर रखना है, न छिपकर रहना है। जिस प्रकार सूरज अपना तेज प्रकट करता है, उसी प्रकार हमें अपना हिम्मत-रूपी सूर्य प्रकट करना है।
चीनियोंका जोर
चीनियोंने पिछले रविवारको सभा की थी। उसमें श्री पोलकको बुलाया गया था। श्री पोलक द्वारा सारी बातें समझा दी जानेके बाद उन लोगोंने फिरसे अपने निर्णयको पुष्ट किया कि कोई भी चीनी नये कानूनके सामने नहीं झुकेगा और यदि झुका तो उसे समाजसे बाहर कर दिया जायेगा।
एशियाई भोजनालय
जोहानिसबर्गकी नगर-परिषद ऐसा कानून बनाना चाहती है कि एशियाई भोजनालयोंके प्रबन्धक गोरे ही हो सकते हैं। तब क्या ट्रान्सवालमें हिन्दू-मुसलमानोंके भोजनालयोंमें गोरे