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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परोसेंगे और भारतीय देखा करेंगे? यह सब गुलामीका पट्टा लेनेवालोंपर लागू होगा। मुक्त रहनेवालोंको कोई हाथ नहीं लगा सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९०७

६२. प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल विधानसभाको

जोहानिसबर्ग
जुलाई ९, १९०७

सेवामें

माननीय अध्यक्ष और सदस्यगण

ट्रान्सवाल विधानसभा

ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्षका प्रार्थनापत्र नम्र निवेदन है कि,

१. ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिके इच्छानुसार इस सदनके विचाराधीन प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकके सम्बन्धमें आपका प्रार्थी यह निवेदन करता है।
२. उपर्यक्त संघ यद्यपि इस विधानके सिद्धान्तका समर्थन करता है, तथापि उसकी नम्र सम्मतिमें भारतीय दृष्टिकोणके अनुसार उसके निम्नलिखित कुछ पहलू गम्भीर रूपसे आपत्तिजनक हैं:
(क) यह विधेयक भारतीय भाषाओंको, जिनमें भारी मात्रामें साहित्य है, मान्यता नहीं देता।
(ख) यह उनके दावेको, जो पहले ट्रान्सवालके अधिवासी रह चुके हैं, मान्यता नहीं

देता। (बहुत-से भारतीय, जिन्होंने १८९९ से पहले १८८६में संशोधित १८८५के कानून ३ के मातहत ३ पौंड इस देशमें बसनेके लिए अदा किये थे, लेकिन जो इस समय उपनिवेशसे बाहर है और जिन्हें शान्ति-रक्षा अध्यादेशके मातहत अनुमतिपत्र नहीं मिले हैं, इस विधयकके द्वारा इस देशमें तबतक पूनः प्रवेश नहीं कर सकते जबतक कि उनमें शिक्षा सम्बन्धी वे योग्यताएँ न हों जिनके बारे में इस विधेयकमें व्यवस्था की गई है।

(ग) खण्ड २ की धारा ४, जैसा कि इस संघको समझाया गया है, उच्च शिक्षा प्राप्त

ब्रिटिश भारतीयोंका भी, जबतक वे एशियाई पंजीयन अधिनियमकी शर्तोंको पूरा नहीं करते, ट्रान्सवालमें प्रवेश करना प्रायः असम्भव कर देती है। (संघकी नम्र रायमें विधेयक द्वारा जो शिक्षा सम्बन्धी परीक्षाएँ लाजिमी करार दी गई हैं उनके पास कर लेनेके बाद किसी व्यक्तिका, उपनिवेशमें प्रवेश करनेके लिए, आगे और शिनाख्त देना कोई अर्थ नहीं रखता)।