पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
ट्रान्सवालका नया प्रवासी विधेयक
(घ) जैसा कि संघको समझाया गया है, धारा ४ ब्रिटिश भारतीयोंको अनैतिकता अध्यादेशके अन्तर्गत आनेवाले लोगोंकी श्रेणी में रख देती है और इसलिए ब्रिटिश भारतीय समाज इसे बहुत ही अपमानजनक समझता है।
(ङ) यह विधेयक, आशाके विपरीत, एशियाई पंजीयन अधिनियमको बरपा करता है।

३. यह संघ माननीय सदनका ध्यान नम्रतापूर्वक इस बातकी तरफ खींचना चाहता है। कि ब्रिटिश भारतीयोंका माननीय सदनमें प्रतिनिधित्व नहीं है और इसलिए वे माननीय सदनसे आदरपूर्वक इस बातकी आशा रखते हैं कि वह उनकी बातपर विशेष गौर करेगा।

४. अन्तमें, इस संघका विश्वास है कि इसके प्रार्थनापत्रपर उचित विचार किया जायेगा और जो राहत इन हालतोंमें दी जानी सम्भव हो, वह दी जायेगी। और न्याय तथा दयाके इस कार्य के लिए आपका प्रार्थी कर्तव्य मानकर सदा दुआ करेगा, आदि।

मूसा इस्माइल मियाँ
कार्यवाहक अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल आफिस रेकर्ड्स, सी० ओ० २९/१२२

६३. ट्रान्सवालका नया प्रवासी विधेयक

[जुलाई ११, १९०७के पूर्व]

यह विधेयक अभी कानन तो नहीं बना, फिर भी इससे सरकारका इरादा व्यक्त हो जायेगा, इसलिए इसका संक्षिप्त विवरण हम नीचे दे रहे हैं:

(१) इसके द्वारा अनुमतिपत्रका कानून [१९०३ का शान्ति-रक्षा अध्यादेश] रद हो जाता है। किन्तु एशियाई-पंजीयन कानूनके द्वारा जो सत्ता दी गई है, उसमें से कुछ भी इस विधेयकके द्वारा रद नहीं होती।

(२) नये विधेयकके लागू होनेकी तारीखसे जिन्हें ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी अनुमति नहीं है वे लोग निम्नानुसार हैं:

(क) जिन्हें किसी भी यूरोपीय भाषाका अच्छा ज्ञान न हो;
(ख) जिनके पास अपने निर्वाहके योग्य पैसा न हो;
(ग) वेश्या और उनके भड़वे;
(घ) जो प्रवेशकर्ता उस कानूनकी अवहेलना करे जिसके द्वारा सरकार निर्वासित कर सकती है।
(ङ) पागल, कोढ़ी या छूतकी बीमारीवाले;

१. ट्रान्सवाल विधान सभाके सदस्य श्री विलियम हॉरकेनने, जिनकी मार्फत यह प्रार्थनापत्र पेश किया गया था, मूल प्रार्थनापत्रसे यह अनुच्छेद निकाल दिया था।