जब भी उससे बाहर कम खर्च में काम करानेका खयाल करते है, तब हम अत्यन्त कसकर सौदेबाजी करनेकी सामान्य दुर्बलताका परिचय देते हैं। इसी कारण मैने अपने मनमें दक्षिण आफ्रिकाकी किताब' बम्बईमें छपाने के विचारको बुरा माना है। और मैं इसको इतनी तीव्रतासे अनुभव करता है कि अभीतक किताब लिखने योग्य उत्साह संचित नहीं कर पाया हूँ। मैं तुमसे यही कहूंगा कि तुम खुद सोच-विचार कर यह खयाल अपने मनसे निकाल दो। हम अतिरिक्त आदमी नियुक्त करें या न करें और किताब छापें या न छापें, इसकी चिन्ता मत करो; यह तो तफसीलकी बात हुई। पहली बात सिद्धान्त स्थिर करनेकी है। यदि हम उसको कार्यान्वित नहीं कर सकते या ऐसा करने के लिए हममें पर्याप्त साहस नहीं है तो हम उसके सम्बन्धमें चिन्ता करना ही छोड़ दें और अपने कार्य के क्षेत्रको बढ़ानेका विचार भी न करें। यदि तुम्हें रुपयेकी आवश्यकता हो तो मुझे समयपर सूचित करना।
तुम्हारा शुभचिन्तक,
टाईप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४६७४) से।
६५. पत्र: छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
जुलाई ११, १९०७
मैं प्रागजी खंडूभाई देसाईका पत्र साथ भेज रहा हूँ। यदि वह जरा भी वाञ्छनीय जान पड़े तो मेरा सुझाव है कि तुम उसे ३ पौंडपर परीक्षाकी शर्त पर रख लो और गजराती केसपर लगा दो, जिससे कि तुम 'रामायण' का काम जारी रख सको। गुजराती विभागमें हमारे पास निश्चय ही कार्यकर्ताओंकी कमी है। परन्तु मैं सिर्फ सुझाव दे रहा हूँ। हो सकता है कि वह सर्वथा अव्यावहारिक हो। इसलिए तुम जो सर्वोत्तम समझो वही करना।
तुम्हारा शुभचिन्तक
मोहनदास[१]
श्री कॉर्डीज़[२] कैसे लगते हैं आदि हकीकतें लिखना।[३]
गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त मूल अंग्रेजी टाइप-प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन०४७५७) से।
[४] विचार था कि इंडियन ओपिनियन दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी मुसीबतोंपर एक पुस्तक प्रकाशित करे। देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४३०।
[५] मूल प्रतिमें हस्ताक्षर गुजरातीमें हैं।
[६] एक जर्मन थियॉसफिस्ट जी गांधीजी के साथी बन गये थे। वे कुछ समय तक फीनिक्स स्कूल के प्रबन्धक रहे थे। उनका देहान्त १९६० में सेवाग्राममें हुआ था।
[७] मूल प्रतिमें यह पंक्ति गांधीजीकी गुजराती लिखावटमें है।