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६६. भारतीयोंकी कसौटी

आजतक भारतीय समाजका मूल्यांकन नहीं हुआ। मुट्ठी बँधी रही है और किसीने उसका अन्दाजा नहीं लगाया। सामान्य विचार यह रहा है कि भारतीय निर्माल्य और जीवनरहित है।

किन्तु सौभाग्यसे अब ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी कसौटी हो रही है। यह अवसर लॉर्ड एलगिन, जनरल बोथा और उनके भाइयोंने दिया है। यह लिखते समय तो भारतीय कसौटीपर चढ़ चुके हैं। हम जो चिट्ठियाँ प्रकाशित करते हैं उनसे मालूम होता है कि प्रिटोरियाने, जिसे गोरे निर्बल मानते थे, एकाएक जोर दिखाया है। वहाँ एक भी भारतीयने खूनी चिट्ठी नहीं ली। एक मद्रासी गया था। किन्तु अँगुलियोंकी निशानीकी बात देखते ही उसने भी अर्जी फेंक दी और कहा: “अँगुलियाँ तो मैं हर्गिज नहीं लगाऊँगा।" एक मद्रासी पोस्ट मास्टरने अपनी नौकरी छोड़ना मंजर किया, किन्तु नया अनुमतिपत्र लेनेसे इनकार कर दिया। जहाँतक हमने सुना है, श्री चैमनेके पंजाबी नौकरने नया अनुमतिपत्र लेनेसे साफ इनकार कर दिया है। इस सबसे जाहिर होता है कि परीक्षाके समय भारतीय प्रजा कमजोर साबित होगी, सो बात नहीं।

जाको राखे साइयाँ, मारि सकै नहिं कोय। भारतीय समाज आस्तिक है, ईश्वरको माननेवाला है। वह ईश्वरपर भरोसा रखकर हाथमें लिया हआ काम सहज कर सकेगा। कहा जाता है कि नरसिंह मेहताने अपनी आस्थाकी बदौलत पैसा न होते हुए भी ममेरा' चढ़ाया था। पैगम्बर मूसाने खुदाकी मददसे महान संकटोंका सामना करके दुश्मनोंपर विजय प्राप्त की थी। वहीं जगत-कर्ता भारतीय समाजकी सहायता करेगा।

ट्रान्सवालके भारतीयोंपर इस समय हर भारतीयकी नजर है; और सब मुंह फाड़े यही प्रश्न कर रहे हैं कि भारतीय अपने उठाये हुए बीड़ेको बनाये रखेंगे या नहीं। प्रिटोरिया जवाब दे रहा है कि भारतीय समाज अब पीछे पैर रख ही नहीं सकता।

[गुजरातोसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९०७
 

[१] गुजरातके सुप्रसिद्ध सन्त कवि। [२] सतवाँसा: पुत्रीके प्रथम गर्भके सातवें मासमें एक धार्मिक संस्कार होता है, जिसे 'सतवासा' कहते हैं। उस अवसरपर माता-पिता पुत्रीको कुछ भेट देते हैं। कहा जाता है कि भगवान अपने भक्त नरसिंह मेहताकी सहायताके लिए एक व्यापारीका रूप धरकर आये थे।

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