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६७. डर्बनका कर्तव्य

प्रिटोरियाके काम और वहाँके भारतीय स्वयंसेवकोंका जोश देखकर किस भारतीयको हर्षसे रोमाञ्च न होता होगा? शाबाशी देना आसान है। सच्ची शाबाशी तो इसमें है कि उनके समान काम करके दिखाया जाये। जिस प्रकार ट्रान्सवालमें अनुमतिपत्र कार्यालयका बहिष्कार किया जा रहा है, उसी प्रकार डर्बनमें भी किया जाना चाहिए। इस समय डर्बनसे एक भी भारतीयका ट्रान्सवाल आना दूधमें मक्खी गिरनेके समान है। ट्रान्सवालके भारतीयोंको आज सच्चे बलिदानके लिए तैयार होना है। जो भारतीय खास तौरसे ट्रान्सवालमें मदद करनेके लिए नहीं, बल्कि अपने कामके लिए आता है, वह यहाँ आकर भारतीयोंका बल नहीं बढ़ाता बल्कि उल्टे उन्हें कमजोर बनाता है। इसके अलावा चूंकि वह डर्बनके अनुमतिपत्र-कार्यालयमें जानेके बाद हो ट्रान्सवालमें प्रवेश कर सकता है इसलिए यही माना जायेगा कि बहिष्कारका भंग हुआ है। किन्तु यदि कोई भी भारतीय अनुमतिपत्र कार्यालयमें नहीं जाये तो डर्बनका अनुमतिपत्र कार्यालय चल नहीं सकता। इसलिए डर्बनके भारतीयोंको प्रिटोरियाका अनुकरण करना चाहिए।

नेटाल भारतीय काँग्रेसने ट्रान्सवालके लोगोंको आर्थिक सहायता देनेके बारेमें लिखा है, सार्वजनिक सभा करके जोश भरा है। चन्दा इकट्ठा करनेकी बात भी हाथमें ली है। यह प्रशंसनीय है। इसके अलावा डर्बनके अनुमतिपत्र-कार्यालयके बहिष्कारका काम भी हाथ में लेना जरूरी है। बहिष्कार तीन तरहसे किया जा सकता है। एक तो डर्बनके कार्यालयपर धरना दिया जाये, जिससे वहाँ कोई भारतीय न जा सके। दूसरे, ट्रान्सवालकी रेल पहुंचे तब वहाँ इस बातकी जाँच की जाये कि वहाँ कौन भारतीय उतर रहा है, और वह नया अनुमतिपत्र लेकर जा रहा हो या पुराना, यदि वह जेल जानेको तैयार न हो तो उसे रोकनके लिए आजिजी की जाये। तीसरे, इस बातकी व्यवस्था की जाये कि जहाजपर कोई भी भारतीय अंगुलियोंकी निशानी न दे। इस तरहसे डर्बनकी बड़ी सहायता होगी और छुटकारा मिलने में शीघ्रता होगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९०७