६८. पूर्व ज्ञानमाला[१]
ये पुस्तकें अभी-अभी अंग्रेजी में छपी हैं। किसीने इनका गुजराती अनुवाद नहीं किया। किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतेगा, हम इस प्रकारको पुस्तकोंका सारांश देते जायेंगे। इसी हेतुसे पैगम्बरका जीवन-चरित्र देना आरम्भ किया है। इस बीच अंग्रेजी जाननेवाले उपयुक्त पुस्तकें मँगवा सकते हैं।
सम्पादक
इंडियन ओपिनियन
इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९०७
६९. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें
जोहानिसबर्ग
जुलाई १४, १९०७
श्री गांधीने उस तारीख तकके मामलोंकी स्थितिका संक्षेपमें सारांश दिया और नये कानूनको अन्यायपूर्ण धाराओंका अन्ततक विरोध करनेके लिए अपने श्रोताओंको एक बार फिर प्रोत्साहित किया और कहा कि उन्हें किसी भी अवस्थामें दबावके कारण कदापि पुनः पंजीयन नहीं कराना चाहिए।
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७
१. यह गांधीजीने नारबुडवासी एम० एच० उगतके १९ जून १९०७ के पत्रके उत्तर में लिखा था। श्री उगतने पूर्वका ज्ञान (पृष्ठ ४२-४३) का उल्लेख करते हुए इस प्रकार लिखा था: “गत १५ तारीखके अंकमें पूर्वज्ञान, जलालुदीन रूमी, कुरान शरीफनो सार, बुद्ध शिक्षा, जरथुस्त्रना शिक्षण आदि पुस्तकोंके सम्बन्धमें ध्यान दिलाकर उन्हें मँगानेकी जो सिफारिश की है वह शुभ है। परन्तु हमारा समाज चूंकि कमोबेश गुजराती जाननेवाला है इसलिए मेरा खयाल है कि उपर्युक्त पुस्तकें गुजरातीमें हों तो थोड़ी-बहुत खपेगी। आशा है आप खुलासा करेंगे।"
२. देखिए, “पैगम्बर मुहम्मद और उनके खलीफा", पृष्ठ ५४-५५।
३. गांधीजीने भारतीय बस्ती में आयोजित हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें भाषण दिया था। यह उनके भाषणका सारांश है।
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