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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साढ़े तीन बजे हुई थी। श्री गांधीने उस बैठकमें कानून सम्बन्धी बातें कहीं। उनके बाद श्री नायडूने वही बातें तमिल भाषामें कहीं। फिर श्री पोलकने भाषण दिया। श्री पोलकने कहा कि पुराने जमाने में एक जानवर था। उसकी यह विशेषता थी कि यदि कोई उसका सिर काटता तो बदले में दो सिर हो जाते थे। इस प्रकार जब उसका सिर कटता तब दो सिर रहते थे। इस बातका जब लोगोंको पता चला तब कोई उसे छेड़ता ही न था। भारतीयोंको इस समय वैसा ही करना है। उन्हें किसी नेतापर भरोसा करके नहीं बैठना है। सभी नेता है, यह समझना चाहिए और यदि सरकार एकको जलमें बन्द करे तो बदलेमें दो व्यक्तियोंको नेता बनने जेल या निर्वासन भोगनेके लिए तैयार रहना चाहिए। इस तरह होनेपर सरकार विना हारे नहीं रह सकती। हुजूरियोंको समझना चाहिए कि वे नौकर होने के पहले मर्द है। इस प्रकार संकटको समझकर नौकरीका भय रख बिना उन्हें दृढ़तापूर्वक कानूनका विरोध करना है।

सरकारी दुभाषिये श्री डेविडने कहा कि सरकारने उन्हें पंजीयन करवाने के लिए कहा तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया।

इसके बाद श्री गांधीने प्रश्न पूछा तो हरएकने खड़े होकर बताया कि हमारी नौकरी जायेगी तब भी हममें से कोई पंजीयन करवाने नहीं जायेगा। पौने पाँच बजे सभा समाप्त हुई।

जर्मिस्टनमें सभा

जमिस्टनके भारतीय बड़ा जोश दिखा रहे हैं। पण्डित रामसुन्दर महाराज आगे रहकर बेधड़क काम करते है और लोगोंको समझाते हैं। उन्होंने विशेष सभा करके यह प्रस्ताव पास किया है कि चाहे जितनी जोखिम उठानी पड़े, उनमें से कोई नये कानुनके सामने नहीं झुकेगा। उस प्रस्तावमें दो सौसे ज्यादा व्यक्तियोंने हस्ताक्षर किये हैं। इसके अलावा कुछ बहादुर लोग प्रिटोरियाके समान स्वयंसेवक बननेको भी निकल पड़े हैं।

प्रवासी कानून

प्रवासी-विधेयकका दो बार बाचन किया जा चुका है। श्री स्मट्सने विधेयकके पेश किये जानेका उद्देश्य बताया था। उसमें श्री हॉस्केन, श्री लिंडसे, श्री वाइवर्ग', श्री नेसर और श्री ह्वाइटसाइड आदि सदस्योंने भाग लिया था। श्री हॉस्केनने भारतीयोंके पक्षमें बोलते हुए कहा कि नया विधेयक तो रूस में शोभा दे सकता है। इस कानूनकी कुछ धाराएँ तो अंग्रेजी राज्यमें होनी ही नहीं चाहिए।

संघकी अर्जी

इस विधेयकके विरोधमें संघने अर्जी दी है। वह अंग्रेजी विभागमें दी जा चुकी है। उसका सारांश इस प्रकार है:

यह संघ यद्यपि आव्रजनपर अंकुश रखनेकी नीतिके विरुद्ध नहीं है फिर भी नम्रतापूर्वक निम्न आपत्तियां पेश करता है; (क) इस विधेयकमें भारतकी एक भी भाषाको स्वीकार नहीं किया गया। (ख) ट्रान्सवालके पुराने निवासियोंके अधिकारोंकी यह विधेयक रक्षा नहीं करता;

[१] ट्रान्सवालके खान-आयुक्त। [२] देखिए " प्रार्थनापत्र: टान्सवाल विधान सभाको", पृ४ ९२-९३।

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