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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

उदाहरणार्थ बहुतेरे भारतीयोंने ट्रान्सवालमें रहने के लिए बोअर सरकारको ३ पौंड दिये थे, किन्तु उनमें से बहुतोंको अनुमतिपत्र नहीं मिले। ऐसे लोगोंके हक, यदि उन्हें यूरोपीय भाषाका ज्ञान न हो तो, नष्ट हो जाते हैं। (ग) दूसरी धाराकी चौथी उपधाराके अनुसार जिन्हें कानूनन आनेका अधिकार है, ऐसे लोगोंपर भी नया एशियाई कानून लागू होता है। इस तरह कानून के लागू किये जानेका कुछ भी उद्देश्य नहीं है, क्योंकि ज्यादा पढ़े हुए लोगोंको पहचान तो उनका ज्ञान ही है। (घ) इसके अतिरिक्त उसी धाराके द्वारा भारतीय समाजको वेश्या और भड़वोंकी श्रेणी में रखा गया है। (ङ) पहले बहुत आश्वासन दिये गये थे किन्तु उनके विपरीत इस विधेयकके द्वारा एशियाई पंजीयन कानून कायम रहता है।

संसदको ध्यानमें रखना चाहिए कि एशियाई समाजके पास मताधिकार नहीं है, और इसलिए उसकी अर्जीपर ध्यान देना उसका दुहरा कर्तव्य है। अतः संघ प्रार्थना और आशा करता है कि उसकी अर्जीपर पूरा ध्यान दिया जायेगा तथा न्याय किया जायेगा।

यह अर्जी श्री हॉस्केनने पेश की है। समितिमें इस विधेयककी बुधवारको छानबीन की जायेगी। यह पत्र में सोमवारको लिख रहा हूँ। इसलिए कुछ परिवर्तन होता है या नहीं, यह 'इंडियन ओपिनियन' के प्रकाशित होनेके पहले ही मालूम हो जायेगा।

जेलमें अखबार मिलेगा?

एक भाईने यह प्रश्न किया है। उत्तरमें यही कहना है कि यह इस बातपर निर्भर है कि जेल किस प्रकारकी मिलती है। यदि कड़ी सजा मिली तो अखबार नहीं मिलेगा। किन्तु हर कैदीसे उसके सगे-सम्बन्धी महीने में एक बार मिल सकेंगे। उन सगे-सम्बन्धियोंको मेरी सलाह है कि वे "इंडियन ओपिनियन' का सारांश याद करके जेल-महलमें रमनेवाले भारतीयको सुना आयें।

सुनवाई नहीं हुई

प्रिटोरियाके कुछ भाइयोंको यह लगा है कि स्थानीय सरकारसे कुछ माँग करे और यदि वह दे दे तो जेलकी झंझटसे छूट जायें। किन्तु खुदा हमें पूरी तरह कसना चाहता है। इसलिए माँगका कुछ भी नतीजा नहीं निकला। उन लोगोंने श्री स्मट्ससे निम्नानुसार माँग की थी:

(१) दस अँगुलियाँ न लगवाई जायें;
(२) माँका नाम छोड़ दिया जाये;
(३) बड़ोंका पंजीयन किया जाये और बच्चोंको परेशान न किया जाये;
(४) काफिर पुलिस जाँच नहीं कर सकेगी;
(५) तुर्की के ईसाई और मुसलमानके बीच भेदभाव किया गया है, वह समाप्त किया जाये;
(६) ऑरेंज रिवर कालोनीका नाम अनुमतिपत्रपर है, उसे रहने दिया जाये;
(७) बच्चोंकी उम्र कितनी है, इसे तय करना पंजीयकके हाथमें नहीं, अदालतके हाथमें रखा जाये; :(८) व्यापारीके नौकरोंको आने-जानेके मियादी अनुमतिपत्र उदारतापूर्वक दिये जाने चाहिए।