पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(९) इसके बाद और कानून नहीं बनाया जायेगा, इसका आश्वासन मिलना चाहिए।

श्री स्मट्सने लम्बा उत्तर दिया है। उसमें एक बड़ी खूबी है। मीठे शब्दोंसे कोई मर सकता हो तो उसे मार डालना चाहते हैं। वे माँगके उत्तरमें कहते हैं कि यदि सभी भारतीय पंजीयन करवा लेंगे तो माँका नाम बतलानेके लिए मजबूर नहीं किया जायेगा, काफिर पुलिस-सिपाही अँगुलियोंकी निशानी नहीं मांगेंगे—यानी अनुमतिपत्र तो मांग सकेगा; और कानून बनाया जायेगा या नहीं यह भारतीय समाजपर निर्भर है। यदि वे ठीक तरह कानूनके अनुसार चलेंगे तो स्मट्स साहबका कहना है कि शायद ज्यादा सख्ती नहीं बरती जायेगी।

खून खौलता है

इस उत्तरका ब्योरा देते हुए मेरा खून खौलता है। अगर सीधे चलेंगे तो ज्यादा सख्ती नहीं करेंगे। इसका क्या मतलब हुआ? खूनी कानूनके द्वारा हमें जीते-जी मुर्दे बनाकर क्या अब मुर्देको ठोकर मारने के लिए नया सुधार करेंगे? देखनेकी बात यह है कि श्री स्मटसने किसी भी बातमें अपनी हठ नहीं छोड़ी है। क्योंकि, माँका नाम न दिया जाये, यह भी वे नहीं कहते। सभी भारतीय पंजीयन करवा लेंगे, तब वह पवित्र नाम बतलाना या न बतलाना हमारी इच्छापर निर्भर है। काफिर पुलिस अँगुलियोंकी निशानी नहीं मांग सकती, पर पास तो माँग ही सकेगी। यदि नया कानून स्वीकार कर लिया गया तो "ऊफी पास" का गीत भारतीयोंके सिर जड़ा ही समझिए।

किन्तु ठीक हुआ

इस तरहका जुल्मी वार रेशममें लपेटकर किया गया, यह ठीक ही हुआ है। अब भारतीय समाज और भी ज्यादा जोर करेगा। जिस तरह खतरनाक कानूनके अन्तर्गत खतरनाक नियम ही बन सकते हैं, उसी प्रकार उसका उत्तर भी खतरनाक ही होगा। खतरनाक नियमोंसे भारतीय उत्तेजित हुए थे, किन्तु यह उत्तर उस उत्तेजनाको और भी मजबूत कर देगा। खुदाको बीचमें खड़ा करके हमने कानूनका बहिष्कार किया है। उसी खुदाको बीचमें रखकर हमें हिम्मत रखनी है।

सुधार

स्वयंसेवकोंमेंसे एकने श्री ईसप मियाँको शाल उढ़ाया था। एक सज्जन सूचित करते हैं कि उक्त व्यक्तिका नाम देने में मुझसे भूल हुई है। मैं उनका आभार मानता हूँ। शाल श्री गुलाम मुहम्मदने उढ़ाया था। मैं इसके लिए श्री गुलाम मुहम्मदसे माफी माँगता हूँ।

ट्रान्सवाल प्रवासी-विधेयक[१]

प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक परिषद्में दूसरी बार पढ़ा गया। और बधवारको उसका तीसरा वाचन हुआ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७

[२] यह “विशेष तार द्वारा" भेजा गया था।

  1. १.
  2. १.