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७१. पत्र: उपनिवेश सचिवको

२५ व २६, कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
[जुलाई १६, १९०७[१]]

सेवामें

माननीय उपनिवेश सचिव
प्रिटोरिया

महोदय,

मेरे संघको समितिकी इच्छा है कि मैं सरकारका ध्यान संघके उस प्रार्थनापत्रकी ओर आकृष्ट करूँ जो संघने प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकके विषयमें] माननीय विधान [सभा] की सेवामें प्रस्तुत किया है। इसमें जो मुद्दे उठाये गये हैं वे मेरे संघकी विनम्र रायमें उस समाजके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जिसका कि मेरा संघ प्रतिनिधित्व करता है। मेरे संघका खयाल है कि यदि प्रार्थनाके अनुसार राहत बख्शी गई तो भी विधेयकके सिद्धान्त ज्योंके-त्यों बने रहेंगे।

इस बातका कोई कारण मेरे संघकी समझमें नहीं आता कि सुशिक्षित भारतीयोंसे पंजीयन अधिनियमका पालन करानेकी आवश्यकता क्यों है? जिन ब्रिटिश भारतीयोंने ट्रान्सवालमें बसनेके लिए ३ पौंडका कर चुका दिया है, परन्तु जिन्हें शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत परवाने नहीं मिले हैं, उन्हें अपने अपनाये हुए देशमें लौटनेके अधिकारसे वंचित रखना बड़ा गम्भीर अन्याय प्रतीत होता है।

इसलिए मेरे संघको भरोसा है कि सरकार उसकी प्रार्थनापर अनुकूल विचार करनेकी कृपा करेगी।

आपका, आदि,
मूसा इस्माइल मियाँ
कार्यवाहक अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७

[२] यह पत्र इंडियन ओपिनियनमें बिना तारीखके छपा है, परन्तु टान्सवाल विधानसभाके अभिलेख संग्रहालयमें प्राप्त सरकारी कागजोंसे इसी तारीखका संकेत मिलता है।

[३] देखिए प्रार्थनापत्र: टान्सवाल विधानसभाको", पृष्ठ ९२-९३।

[४] चौकोर कोष्टकोंमें दिये गये शब्दोंके पर्याय मूलमें नहीं है।

  1. १.
  2. २.
  3. ३.