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७२. घोर मान-हानि

ट्रान्सवालके एशियाई अधिनियम के बारेमें आगे जो पत्र-व्यवहार हुआ है और जो लॉर्ड ऐम्टहिलकी मांगपर सदन में पेश किया गया है, अब हमें प्राप्त हो गया है। लॉर्ड सेल्बोर्नने लॉर्ड एलगिनका ध्यान इस विधानकी ओर आकर्षित करने के लिए निम्नलिखित उदगार प्रकट किये हैं:

मुझे आशा है कि आप यथाशीघ्र मुझे यह सूचना दे सकेंगे कि महामहिमको यह सलाह नहीं दी जायेगी कि वे इस अधिनियमको अस्वीकृत करनेके अपने अधिकारका प्रयोग करें, जिससे अधिनियम तुरन्त अमलमें आ सके और इस प्रकार गैर-कानूनी तौरपर एशियाइयोंका ट्रान्सवालमें आव्रजन, जो इस समय बड़े जोरोंके साथ बढ़ रहा है, रोका जा सके।

तिरछे अक्षर हमारे हैं।

हमें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि गैरकानूनी आव्रजनके बारेमें लॉर्ड सेल्बोर्नका जोरदार कथन हमारी साफ और सच्ची मानहानि है। लॉर्ड महोदयने एशियाइयोंके गैरकाननी आव्रजनके बारेमें अपने सामने पेश किये गये बयानोंको निस्संकोच भावसे स्वीकार कर लिया है, हालाँकि ये बयान एकतरफा ही हो सकते थे। भारतीयोंने कहा है कि ऐसा कोई आव्रजन नहीं हो रहा है। और उन्होंने इसकी जांच करनेके लिए चुनौती भी दी है। लेकिन अभीतक कोई जाँच नहीं की गई और फिर भी लॉर्ड सेल्बोर्नने, अपने कंधोंपर भारी दायित्वोंका बोझ होनेपर भी, इस बेसबूत इल्जामपर अपने अधिकारकी मुहर लगा देना ठीक समझा है।

यह आरोप सहज ही झूठा है। अगर ऐसा दाखिला प्रत्यक्ष रूपमें होता रहा है तो ऐसे प्रवेशकर्ताओंको उपनिवेशमें रहने ही क्यों दिया गया? या तो लॉर्ड महोदयको सूचना देनेवाले लोग यह जानते थे कि इस प्रकार किन लोगोंने प्रवेश किया है, या वे नहीं जानते थे। अगर वे जानते थे तो शान्ति-रक्षा अध्यादेशके मातहत उनके पास सारे आवश्यक उपाय थे कि वे उन लोगोंको अदालतके सामने पेश करते। इसलिए लॉर्ड सेल्बोर्नने जो तौहीन की है, वह इस बातको साबित करती है कि दक्षिण आफ्रिकामें, सिवाय अदालतके, कहीं भी एशियाइयोंकी सच्ची सुनवाई होना अगर असम्भव नहीं तो कितना कठिन है। और इस तरहके मामले में तो उनके लिए अदालतें भी बन्द हैं; इसलिए उन्हें चुप होकर बैठना पड़ता है और अपनी मसीबतोंको यथाशक्ति हँसकर सहना पड़ता है।

जब हम लॉर्ड एलगिनके जवाबपर विचार करते हैं तब देखते हैं कि वह ब्रिटिश भारतीयोंको निराशासे भर देने के लिए काफी है। उपनिवेश-मन्त्रीने इस विधानको मंजूरी इसलिए नहीं दी कि वे इसे न्यायोचित समझते हैं, बल्कि इसलिए दी है कि इसके पीछे गोरोंके अधिकारका बल है। तो इसका यही अर्थ हुआ कि यदि किसी उपनिवेशको विधानसभाका कोई भी कानून सर्वसम्मत हो तो साम्राज्य सरकार भी, बिना उस कानूनके औचित्य-अनौचित्यको

[१] देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४१८, ४३३-३४ और खण्ड ६, पृष्ठ १, ३, ६, और ५२।

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