७४.गिरमिटिया प्रवासी
हम इस सप्ताह उस महत्त्वपूर्ण पत्रको छाप सकते हैं जो भारतीय प्रवासी न्यास-निकाय सचिवने गिरमिटिया भारतीयोंके मालिकोंको भेजा है। उसमें इन मजदूरोंको नेटालमें लानेके खर्चके सम्बन्धमें जानकारी दी गई है। यह कागज सर्वश्री इवान्स और रॉबिन्सनके देखने योग्य है, जिन्होंने पूरी तरह विचार करनेके बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि नेटालमें गिरमिटियोंका प्रवास बन्द किया जाना चाहिए। हम चूंकि श्री हैगरको जानते हैं, इसलिए उनका उल्लेख इसी श्रेणीमें नहीं कर सकते। यद्यपि हम संयोगसे गिरमिटिया भारतीयोंका प्रवास बन्द करने के प्रयत्नमें उनसे सहमत है, किन्तु हमारे हेतु एक नहीं हैं और भारतीय समाजका उस सदस्यसे बहुत कम सरोकार हो सकता है, जो उनकी मानहानि करनेमें तनिक भी संकोच नहीं करता, और जब उसे अपने कथनको सिद्ध करनेकी चुनौती दी जाती है। तब उसमें उसे सिद्ध करनेकी या क्षमा मांगनेकी मर्दानगी भी नहीं होती। श्री राइक्रॉफ्टने जो पत्र लिखा है उसमें यूरोपीयोंके दृष्टिकोणसे इन मजदूरोंका आव्रजन बन्द करनेका प्रायः पूरा औचित्य बताया गया है। यह प्रत्यक्ष है कि मालिक उनको लानेका खर्च मुश्किलसे ही उठा सकते हैं। अनिवार्य प्रत्यावर्तन, यदि भारत सरकार अपनी संरक्षकता छोड़कर ऐसी किसी शर्तको मान भी ले तो, उनके लिए और अधिक बुरा होगा। यह बताया गया है कि १९०५ में मालिकोंने जहाँ मजदूरोंको लाने के खर्च में केवल २० पौंड दिये वहाँ वास्तविक व्यय प्रति वयस्क पुरुषपर ३१ पौंड १० शिलिंग ९ पेंस आया। और, जैसे-जैसे ३ पौंडी करके भारके कारण अधिकाधिक भारतीय बिना किरायके भारत-वापसीका लाभ उठायेंगे, वैसे-वैसे यह खर्च बढ़ेगा ही। इस प्रकार यह प्रतीत होता है कि विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोणसे गिरमिटिया मजदूरोंको लाना जितना जल्दी बन्द कर दिया जाये, उतना ही दोनों पक्षोंके लिए अधिक अच्छा होगा।
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७
१. वकील।