७५. जनरल स्मट्सका हठ
एशियाई पंजीयन अधिनियमके कारण सरकारने अपने आपको जिस गलत स्थितिमें डाल लिया है, उससे निकलनेके लिए प्रिटोरियाके भारतीयोंने उसे एक मौका और दिया था। वह पत्र-व्यवहार लम्बा है और दुर्भाग्यवश हम इस अंक में उसको शामिल करने में असमर्थ हैं। पंजीयन अधिनियमकी अत्यन्त आपत्तिजनक धाराओके बारेमें सम्बन्धित भारतीयोंके वकीलोने बहत ही उचित सुझाव दिये थे। उपनिवेश-सचिवने प्रायः प्रत्येक प्रार्थनाको साफ-साफ शब्दोंमें अस्वीकार कर दिया है। हम स्पष्ट रूपसे स्वीकार करते हैं कि सरकार इससे भिन्न कूछ कर भी नहीं सकती थी। हमारी रायमें उसे इस पत्रका यह अर्थ लगानेका अधिकार था कि भारतीयोंमें अपने जेल-सम्बन्धी प्रस्तावको कार्यान्वित करनेकी पर्याप्त शक्ति नहीं है। इसलिए सरकारने प्रत्यक्षत: इस अत्यन्त उचित पत्रका गलत अर्थ किया है। उसने अधिनियमके अनुरूप नियम स्वीकार कर लिये है, और प्रिटोरियाके भारतीय प्राथियोंको अपना उत्तर उसी नीतिके अनुसार भेजा है। इस पत्र-व्यवहारसे कुछ लाभ होगा; क्योंकि इससे भारतीय समाजका अनिवार्य पंजीयन स्वीकार न करनेसे होनेवाले कष्टोंको सहन करनेका निश्चय दृढ़ होगा।
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७
७६. द० आ० ब्रि० भा० समितिका काम
दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति इस समय भी बड़ी मेहनत कर रही है। कुछ ही दिन पहले सर विलियम बुल और डॉ० रदरफोर्डने लोकसभामें प्रश्न पूछे थे। इससे मालूम हो सकता है कि समितिने यद्यपि ट्रान्सवालके कानूनका विरोध न करनेकी सलाह दी है और भारतीय समाजने उसे नहीं माना है, फिर भी उसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा। समिति अपना काम किये जा रही है; और ऐसा होना भी चाहिए। समितिकी प्रत्येक सलाह मानने के लिए भारतीय समाज बाध्य नहीं है। समितिके सदस्य उदार-हृदय हैं और वे अपना काम किये जाते है।
सर मंचरजी भावनगरी इतनी सावधानी और दूरंदेशीसे चलनेवाले व्यक्ति है कि उनकी अध्यक्षतामें समिति भारतीयोंका काम छोड़ नहीं सकती। इसके अलावा श्री रिचने लॉर्ड ऐम्टहिलके नाम जो पत्र लिखा है, उससे मालूम होता है कि वे समितिके सामने भारतीय विचारोंको साफ-साफ रखने में कभी संकोच नहीं करते।
डेलागोआ-बे
सर विलियम बुलके प्रश्नोंसे डेलागोआ-बेके भारतीयोंको मालूम हो गया होगा कि उनका प्रश्न भी भुलाया नहीं गया है। 'इंडियन ओपिनियन' में श्री कोठारीका पत्र प्रकाशित