किया गया तो उसके आधारपर सर विलियम बुलने तुरन्त भारतीयोंपर होनेवाले जुल्मोंकी शिकायत की। हमें यहाँ कहना चाहिए कि डेलागोआ-बेके भारतीयोंकी ओरसे समितिको बिलकुल मदद नहीं दी गई है। उनपर इस समय ज्यादा मुसीबत नहीं है, फिर भी हम मानते हैं कि समितिके खर्च में उन्हें हाथ बँटाना चाहिए।
रोडशिया
जिस तरह डेलागोआ-बे नहीं भुलाया गया, उसी तरह रोडेशियाका भी हुआ है। हमारे पाठकोंको खयाल होगा कि भारतीयोंके प्रति रोडेशिया परिषदके जो विचार थे, उन्हें हमने इसी बीच प्रकाशित किया था। विलायत पहुंचते ही श्री रिचने उनका उपयोग किया है और सम्भव है कि रोडेशियामें अधिक सख्त कानून नहीं बन पायेंगे। इस विषयमें विचार करते हुए सवको स्वीकार करना होगा कि क्या रोडेशिया और क्या डेलागोआ-बे, दोनों देशोंकी इज्जत वास्तवमें ट्रान्सवालके भारतीयोंकी लड़ाईपर निर्भर है। वे लाज रखेंगे तो रहेगी, नहीं तो समिति या अन्य कोई ऐसी स्थितिमें नहीं रहेगा कि कुछ सहायता कर सके।
इंडियन ओपिनियन,२०-७-१९०७
७७. लोबिटो-बे
हमारे संवाददाताने समाचार भेजा है कि लोबिटो-बेके मजदूरोंकी हालत बहुत बुरी है। उसके आधारपर हमने ग्रिफिथ पेढ़ीके एजेंटकी मारफत पूछताछ की। उसका नीचे लिखा उत्तर आया है:
रिपोर्ट बे-बुनियाद है। डाक्टरी सहायता बहुत मिल रही है। मजदूरोंके लिए विशेष चिकित्सालय और डॉक्टरकी व्यवस्था है। यदि आवश्यक समझें तो आप नेटालसरकारसे कहियेगा कि जाँच करनेके लिए किसी व्यक्तिको भेजे। मजदूरोंकी स्थिति अच्छी है। उन्हें सन्तोष है। पानी उत्तम है। खाद्य-सामग्री बहुत है।
हमारे संवाददाता द्वारा भेजे गये समाचारमें और इसमें विरोध है। हमारा संवाददाता बहुत ही सावधानीसे काम लेनेवाला और नि:स्वार्थ व्यक्ति है। इसलिए उसका समाचार बेकार नहीं है। हम दोनों समाचारोंको मिलाकर यह अर्थ करते हैं कि जब मजदूर वहाँ पहुँचे तब उन्हें बहुत कष्ट थे और वह समाचार हमारे संवाददाताको मिला। इस समय उनकी हालत उतनी खराब नहीं है। साधारणतः वे सुखी होंगे। फिर भी इतना तय है कि अभी भारतीयोंके लिये साहस करके वहाँ जानेका विचार करना बेकार है। बेगुएला पहुँचने तक निःसन्देह बहुत कष्ट है, और बेंगुएला पहुँच जानेके बाद भी कोई स्वतन्त्र रहकर कुछ कारोबार कर सके, सो स्थिति अभी नहीं है।
इंडियन ओपिनियन, २०-१७-९०७