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७८. नेटालमें परवाने और टिकटका विधेयक

राजस्व परवानेके सम्बन्धमें कुछ संशोधन करनेके लिए एक विधेयक १२ जुलाईके नेटालके सरकारी ‘गज़ट' में प्रकाशित हुआ है। उसमें से महत्त्वपूर्ण बातें हम नीचे दे रहे हैं:

(१) १८९७का व्यापार कानून अबसे काफिर भोजनालयपर लागू होगा।
(२) मजिस्ट्रेटके एक विभागमें फेरी लगानेका परवाना मिला हो तो उसका दूसरे विभागमें उपयोग नहीं किया जा सकता।
(३) कोई फेरीवाला एक फार्मपर १२ घंटेसे ज्यादा नहीं ठहर सकता, और उसो जगह पर चार दिन तक दूसरी बार नहीं जा सकता।
(४) नगर-परिषदमें परवानेपर उसकी कीमतके अलावा उसके दसवें हिस्सेके दूसरे टिकट लगाने होंगे। वह दसवाँ हिस्सा परवानेवाला देगा और सरकारको मिलेगा।
(५) विदेशी पेढ़ोके एजेंटको परवाना लेना होगा। और यदि नीलाम करनेवाला वैसा माल बेचे तो उसे भी परवाना लेना होगा।
(६) अपने व्यापारका परवाना लेते समय हर व्यक्ति, यदि उसके पास एजेंसी हो तो,

अधिकारीके सामने यह बात कहनेके लिए बाध्य है।

(७) वतनी अथवा भारतीयको किरायेकी रसीद दी हो तो उसके लिए अलगसे रसीद बुक रखी जाये, उसपर क्रम-संख्या डाली जाये और पन्नोंपर मुहर उभरी हुई होनी चाहिए। चिपकाई हुई मुहरसे काम नहीं चलेगा।

यह विधेयक अभी कानून तो नहीं बना है, किन्तु माना जा सकता है कि कानून बन जायेगा। उसमें कुछ परिवर्तन होना सम्भव है, लेकिन बहुत छोटे-मोटे यह सबपर लागू होता है, इसलिए इसका विरोध करना कठिन है। इस विधेयकका मतलब यह है कि उपनिवेशमें इस समय पैसेकी तंगी है, इसलिए जहाँ-तहाँसे पैसा इकट्ठा किया जाये। गुस्सा आनेपर कुम्हार गधीके कान खींचता है, उसी प्रकार सरकारके पास पैसेकी कमी है इसलिए उसने फेरीवाले जैसे गरीबोंपर हमला किया है। संक्षेपमें सारा दक्षिण आफ्रिका इस समय कंगाल बन गया है। इसलिए सरकार पैसेके लिए इधर-उधर भटक रही है। परवानोंकी जो विभिन्न दरें रखी गई है उन्हें हम इस समय नहीं दे रहे हैं, किन्तु यदि विधेयक पास हुआ तो आवश्यकता मालूम होनेपर प्रकाशित करेंगे। उपर्युक्त सारी उपधाराओंमें किरायेकी रसीदकी उपधारा भयंकर है। उसके सम्बन्धमें लड़ाई लड़नी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७