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७९. गिरमिटिया भारतीय

भारतीय प्रवासी न्यास-निकाय (इंडियन इमिग्रेशन ट्रस्ट बोर्ड) के सचिव श्री राइक्रॉफ्टने गिरमिटिया भारतीयोंके मालिकोंके नाम जो पत्र लिखा है उसे हम अंग्रेजी विभागमें पूरा-पूरा प्रकाशित कर रहे हैं। उससे पता चलता है कि भारतीय गिरमिटियोंको दाखिल करवानेका खर्च सेठोंको भारी पड़ता है और यदि भारतीय मजदूर अपने इकरारके वर्ष पूरे हो जानेपर स्वदेश लौटते हैं तो बहुत ही ज्यादा खर्च होता है। इससे श्री राइक्रॉफ्टका कहना है कि मजदूरोंको यदि बलात् लौटा देनेका कानून बनाया गया तो सेठोंका नुकसान होनेकी सम्भावना है।

इस दृष्टिसे गिरमिटियोंके सेठोंकी हालत साँप-छछंदरकी-सी हो गई है। अगर मजदूरोंको जाने दें तो उनके बमीठे बैठ जायें। यदि वे रोक लें और इधर उन मजदूरोंको भारत भेजनेका कानून बन जाये तो उन्हें बहुत ज्यादा खर्च उठाना होगा। इस संकट में क्या किया जाये, यह एक जबरदस्त सवाल पैदा हो गया है। इस लड़ाईसे भारतीय मजदूरोंको किसी प्रकारका लाभ होनेकी सम्भावना नहीं है। मजदूर न बुलाये जायें यह कहनेवाले और बलाये जायें यह कहनेवाले दोनोंमें से किसीको भी भारतीयोंकी चिन्ता नहीं है। यदि भारतीय मजदूर

और भी कम वेतनपर आयें और गिरमिटके अन्तमें चाहे उन्हें लौटना पड़े फिर भी कोई कुछ कहेगा सो बात नहीं। दोनों पक्ष प्रसन्न होंगे। भारतीय समाजका एक ही तरीकेसे लाभ हो सकता है और वह है, मजदूरोंको बुलाना बिलकुल बन्द हो। मजदूर यहाँ आकर गुलामीकी

अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं कर सकते, उनकी स्वतन्त्र रहनेकी कोई स्थिति नहीं है। हमें यह देखकर प्रसन्नता होती है कि गिरमिटियोंपर पड़नेवाले कष्टोंसे सारे भारतीय समाजको सहानुभति हो रही है। यह हमारी जागतिका लक्षण है। इसलिए यदि हम अब एक कदम आगे बढ़कर गिरमिटपर आनेवाले भारतीयोंको रोक सके तो भारतीयोंकी गुलामी समाप्त होगी और इस समय दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय समाजके जितने लोग रह रहे हैं उन्हें कुछ राहत मिलेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९०७
 
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