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८०. भाषण: नेटाल भारतीय कांग्रेसकी सभामें[१]

डर्बन
जुलाई २०, १९०७

तेरह वर्षोंकी लड़ाईमें आजकी लड़ाई ही बड़ी आनवानकी है। इसलिए इसका परिणाम भी उतना ही भारी होना चाहिए। इस कानूनका सारे दक्षिण आफ्रिकापर समान असर पड़ेगा। रोडेशिया और जर्मन आफ्रिकामें तो इसके छींटे उड़े ही हैं, किन्तु भारतमें भी इसका बुरा असर पहुँचे बिना नहीं रहेगा। नेटालके भारतीयोंको तो ज्यादा डरना है। [यहाँ १८ मई तथा ६ जुलाईके 'ओपिनियन' से कुछ उदाहरण दिये गये थे]। गोरे कहते है कि भारतीय नौकर तो मंजूर हैं लेकिन स्वतन्त्र भारतीय नहीं चाहिए। इसके अतिरिक्त झठेके साथ सच्चेको बैठाते है। पोरबन्दरके किसी गरीब हासिमका मामला मुझे याद आता है। अपनी लगभग १०० रुपयेकी मौरूसी जमीन छिन जानेके कारण वह बम्बईमें मेरे पास आया। मैंने सलाह दी कि १०० रुपयेकी जमीनके लिए ५०० रुपयेपर पानी क्यों फेरता है? उसने जवाब दिया कि मेरे पुरखोंकी जमीन है। चाहे जो हो, मैं उसे वापस लूँगा। मैं अपना पट्टा झूठा नहीं होने दूंगा। किन्तु ट्रान्सवालके सम्बधमें तो कौमका पट्टा है। एक है, उसे छीनकर दूसरा अपनी मर्जीके मुताबिक देना चाहते हैं। और वह भी केवल भारतीयोंको ही। इसके अलावा पट्टा देते समय, जैसा नाटकमें देखा है, बाप, मां, पत्नी आदिके नाम तथा पहले दस अँगुलियोंकी और उसके बाद आठकी छाप मांगते हैं। इतना सब लेनके बाद मर्जी हो तो मर्जीके अनुसार पट्टा देनेकी बात कहते हैं। ऐसी गुलामी कौन सहन करेगा? तीन-चार पौंड कमानेवाला आदमी जहाँ ठोकर मारे वहीं अपना पेट भर सकता है, तो इतनी छोटी-सी रकमके लिए टान्सवालमें बेइज्जतीके साथ रहना क्यों पसन्द करेगा? इसके अलावा ४०० पौंड कमानेवालेको पैसेसे इज्जत प्यारी होती है। शायद गरीब-अमीर सभी लोग हजूरिये बनकर बेइज्जती सहन कर लें, लेकिन यदि उनके आठ-दस वर्षके लड़केपर जुल्म हो तो वह उनसे कदापि सहन नहीं होगा। बोअर लोग बहादुर हैं। उनका विरोध नहीं किया जा सकता। किन्तु यदि वे गलत हुक्मके सामने झुकने के लिए कहें, यानी गलाम बनने के लिए कहें, तो इनकार किया जा सकता है। हमें लोग खोटे सिक्केके रूपमें जानते है। सच्चा सिक्का बननेका यह अच्छा अवसर है। यदि इस कसौटीपर सच्चे उतर जायें तो दुनियामें कहीं भी रहनेवाले भारतीयोंको इससे लाभ होगा। भारतमें आज बन्दर-न्याय हो रहा है। मुसलमान और हिन्दू, इन दो बिल्लियोंको लड़ाकर सरकार अपना काम बना रही है। यहाँ वह हालत नहीं है। दोनों कौमें एक हैं, इसलिए हमारा साहस सफल होगा। इन सारी बातोंका विचार करके सितम्बरकी सार्वजनिक सभामें मैंने जेलकी सलाह दी। इससे सबने खुदाको बीचमें रखकर हाथ ऊँचे करके जेल जानेकी शपथ ली। उस दिनसे आजतक की हकीकत सब जानते हैं। अब यदि शपथ नहीं निभाते हैं तो हम खुदाके चोर माने जायेंगे। एकके बाद एक नये-नये कानून बनेंगे, हम बिना पानीके माने जायेंगे। तबतक कुत्तोंकी

[२] नेटाल भारतीय कांग्रेसकी आम सभा शनिवारको श्री दाऊद मुहम्मदकी अध्यक्षतामें हुई थी। उसमें एशियाई अधिनियमके फलितार्थोपर गांधीजी बोले थे।

[३] विक्टोरिया इंडियन थियेटर, डरबनमें १३ जुलाई १९०७ को खेला गया एक प्रहसन।

[४]देखिये खण्ड ५, पृष्ठ ४३०-३४।

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