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प्राथनापत्र: ट्रान्सवाल विधान परिषदकी

जिन्दगी रह गई। एक बार एक गोरी महिलाने कहा कि लात खानेवाला झल्लीवाला (बास्केटिया) मान-अपमान क्या समझे? मैंने जवाब दिया कि एक बार यदि उसे यह हल्कापन महसूस हो गया तो फिर जिन्दगीभर पंजीयन नहीं करवायेगा। इसका निश्चय करनेके लिए वह जो भी फेरीवाला उसके आँगनमें आता उससे पूछती थी कि तू नया पंजीयन करवायेगा या नहीं? उस महिलाको जवाब मिलता कि पंजीयन नहीं करवाऊँगा। आज उसे मालूम हो गया है कि भारतीयोंमें कुछ तो बहादुर है। इसलिए अब वह कहती है कि जब भारतीय जेलमें होंगे तब वह उनकी खबर लेती रहेगी और यथासम्भव सार-संभाल करती रहेगी। श्री हॉस्केन कहते है कि सारे भारतीय यदि जेल चले जायें तो सरकारकी ताकत नहीं कि फिर अंगुली उठाये। इससे हमें समझना चाहिए कि यदि हम टेक रखें, तो हमारा दिन निकला ही समझिए। इस समय तो हमारे प्रति यह खयाल है कि हम कोरे शोर मचानेवाले हैं। इसलिए प्रवासी कानूनके खिलाफ की गई हमारी अपील रद्दीकी टोकरीमें फेंक दी गई है। यह सब आपके सामने इसलिए कहना आवश्यक है कि इन उदाहरणोंसे आप सीखें और तैयार रहें। आप और हम एक हो है, इसलिए यदि आप हमारे दुःखमें हाथ बँटायें तो कोई नई बात नहीं होगी। बात करके, यानी प्रस्ताव पास करके तथा पत्र-व्यवहार करके मदद दें, सो काफी नहीं है। खास मदद तो वह भीख मझे देना है जिसके लिए मैं आया है। ट्रान्सवालमें सारे भारतीय चाहे जो नुकसान उठानेको तैयार हैं, तब आपको पैसेसे मदद करने में पीछे नहीं रहना है। आप उसमें कुछ अधिक नहीं कर रहे, बल्कि अपना फर्ज अदा कर रहे हैं। बहुत-से लोग जब जेल चले जायें, तब उनके पीछे रहनेवालोंका भरण-पोषण आपको करना होगा। अतः पानी आनेके पहले बाँध बाँध लेना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप मदद करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७

८१. प्रार्थनापत्र : ट्रान्सवाल विधान-परिषदको

जोहानिसबर्ग
जुलाई २२, १९०७

माननीय अध्यक्ष और सदस्यगण
ट्रान्सवाल विधान परिषद

ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष ईसप इस्माइल मियाँका प्रार्थनापत्र नम्र निवेदन है कि:

१. आपका प्रार्थी ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघका कार्यवाहक अध्यक्ष है।
२. उक्त संघ माननीय सदनसे उस विधेयकके सम्बन्धमें प्रार्थना करता है जो इस देशमें वर्जित प्रवासियों और अन्य लोगोंके प्रवेशपर प्रतिबन्ध लगाने, उनको देशसे निकाल बाहर करने और एक 'प्रवासी विभाग' स्थापित करने और कायम रखनेके उद्देश्यसे अब माननीय सदनके सम्मुख विचारार्थ प्रस्तुत है, या जल्दी ही प्रस्तुत किया जायेगा।
१. इसकी एक नकल एल० डब्ल्यू. रिचने १४ अगस्तको उप-उपनिवेश-मन्त्रीको भेजी थी। वह "आवेदनपत्र: उपनिवेश-मन्त्रीको",(पृष्ठ १८३-८८) के साथ भी संलझ की गई थी।