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८३. परवाना-कार्यालयके बहिष्कारका भित्तिपत्र

[प्रिटोरिया
जुलाई २६, १९०७ के पूर्व]

बहिष्कार करो, परवाना कार्यालयका बहिष्कार करो। जेल जाकर हम प्रतिरोध नहीं करते, अपने सामूहिक हित और आत्मसम्मानके लिए कष्ट सहते हैं। बादशाहके प्रति बफादारी बादशाहोंके बादशाहके प्रति वफादारी चाहती है।

भारतीयो! स्वतन्त्र हो!

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७

८४. प्रिटोरियाकी लड़ाई

{{right|जोहानिसबर्ग,
शुक्रवार, २ बजे
[जुलाई २६, १९०७]

अन्तिम समाचारसे मालूम होता है कि अनुमतिपत्र कार्यालयमें पंजीयनके लिए अभीतक एक भी अर्जी नहीं दी गई है। परन्तु ऐसी अफवाह है कि अनमतिपत्र अधिकारी एक निजी मकानमें पंजीयनके लिए रातको अर्जियां लेने लगे हैं।

गुरुवारको दोपहरमें भारतीयोंकी एक सभा बुलाई गई थी। उसमें यह बताया गया कि कानूनके सामने न झुकनेके लिए हर वैधानिक रीतिसे समझानेका प्रयत्न किया जायेगा। इसके बाद सभी अपनी मर्जीके मुताबिक चल सकते हैं। एक निजी मकानमें रात्रिके समय पंजीयनके लिए अर्जियाँ देना और अनुमतिपत्र अधिकारियोंका इस प्रकारसे चलना कलंककी बात है। सभा जेलके बारेमें दृढ़ है तथा बड़े उत्साहसे काम कर रही है।

नगरके मुख्य स्थानोंसे सरकारने बहिष्कारके भित्तिपत्रोंको उखड़वा डाला है। अनुमतिपत्र कार्यालयके द्वारपर लगे हए भित्तिपत्रने बड़ा मजा दिया। सरकारके यह पछवानेपर कि भित्तिपत्र किसने बनाया है, उसकी सारी जिम्मेदारी श्री गांधीने अपने सिर ले ली है।

[१] इस सन्देशके भित्तिपत्र अनाक्रामक प्रतिरोध संघर्षके दिनोंमें प्रिटोरियामें लगाये गये थे। सरकारने उनको प्रमुख स्थानोंसे हटवा दिया था और उनके लेखकके सम्बन्धमें पूछताछ की थी। उनका उत्तरदायित्व गांधीजीने स्वीकार किया था। देखिए अगला शीर्षक।

[२] यह विशेष तार द्वारा प्राप्त ताजा समाचार' शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था।

[३]देखिए पिछला शीर्षक।

  1. १.
  2. २.
  3. ३.