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“मानवजातिका विस्मय”

तारीख ३१को विराट् सभा होगी। सारे कारोबार बन्द रखने हैं। विज्ञप्तियाँ निकाली जा रही हैं। इसके लिए एक समर्थ समिति नियुक्त की गई है। जैसा पहले कहा गया था, चार दिन तक दूकानें बन्द नहीं रखनी है। पंजीयनपत्र ले लेनेकी अवधिका अन्त निकट आ रहा है, इसलिए गम्भीरता हर क्षण बढ़ती जा रही है। महीना पूरा होनेसे पहले सम्भव है जानने योग्य कई नई-नई बातें सामने आयें।

डबनके हमदर्द भाइयोंकी ओरसे हिम्मत और मदद देने के सम्बन्धमें ढेर-के-ढेर तार आये हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७

८५. "मानवजातिका विस्मय"

कहा जाता है कि भूतपूर्व राष्ट्रपति क्रूगरने एक शक्तिशाली साम्राज्यके साथ असमान लड़ाई छेड़कर “मानवजातिको विस्मित कर दिया" था। उन्हीं के भूतपूर्व देशमें—यद्यपि वह अब नामभरको ब्रिटिश है— ट्रान्सवालके भारतीयों द्वारा इतिहास दोहराया जायेगा। लेकिन यह तुलना पूर्ण रूपसे सही नहीं है। भूतपूर्व राष्ट्रपति एक रक्तरंजित युद्ध में लड़े थे। ट्रान्सवालके भारतीय एक बूँद खुन गिराये बिना ही मानवजातिको विस्मित कर देंगे। हम बिना किसी अनादर भावके कहना चाहते हैं कि भारतीय भूतपूर्व राष्ट्रपतिसे भी अधिक करके दिखानेवाले हैं। अपने सम्मानके लिए—कुछ लोग इसे निरी भावुकता कह सकते हैं—वे अपना सर्वस्व न्योछावर करनेको तैयार हैं। उनका यह दान विधवाका-सा श्रेष्ठ और अक्षय दान होगा।

बहुत-से मित्र कहते है कि स्थानीय सरकार एशियाई अधिनियमको हर तरहसे लागू करनेपर तली हुई है और उनकी बरीसे-बरी आशंकाओंके सही उतरनेकी सम्भावना है। भारतीय इसके जवाबमें कहते है कि वे इस सम्भावनाके लिए तैयार हैं। उन्हें जेल भेजेंगे? वे तैयार हैं। उन्हें जबरदस्ती देश निकाला देंगे? इसके लिए भी वे तैयार हैं। वे अपराधियोंकी तरह जिये और ईश्वरके सामने विश्वासघाती बनें, इससे तो कुछ भी, यहाँतक कि-मौत भी ज्यादा अच्छी होगी।

हो सकता है कि वे गुमराह हों और उनका व्येय वास्तवमें सही न हो। अगर ऐसा है तो वे फिर उसी उदाहरणका सहारा लेते हैं, जिसका हमने उल्लेख किया है, और जवाब देते हैं कि यद्यपि बहुत-से लोगोंके विचारसे भूतपूर्व राष्ट्रपति क्रूगरने ब्रिटिश सरकारके विरुद्ध खड़े होकर बड़ी गलती की थी, तथापि उनमें अपने विश्वासोंपर दृढ़ रहनेका साहस था इसलिए प्रत्येक व्यक्ति उनकी प्रशंसा करता है। इतना ही काफी है कि वे एक ऐसे ध्येयके लिए लड़े जिसे वे सही समझते थे। लेकिन राष्ट्रपति पुरानी धर्म-पुस्तिका (ओल्ड टेस्टामेंट) की प्रेरणाके अनुसार उसी पवित्र ग्रन्थके वीरोंके आदर्शपर लड़े थे। भारतीय, जो इस देशमें ईमानदारीकी रोजीकी खोजमें आकर बसे हैं और जिनके सामने नागरिक और सामाजिक विनाश मुंह बाये खड़ा है, नई धर्म-पुस्तिका (न्यू टेस्टामेंट) की प्रेरणासे लड़ रहे हैं। दुनियाके सबसे बड़े अनाक्रामक प्रतिरोधी करुणावतार ईसा उनके आदर्श हैं। अगर ट्रान्सवालके शासक

[१] एस० जे० पॉल क्रूगर (१८२५-१९०४); ट्रान्सवालके राष्ट्रपति, १८८३-१९००।

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