८८. आदमजी मियाँखाँका शोकजनक अवसान
ईश्वरकी गति गहन है। हमारे प्रसिद्ध नेता श्री आदमजी मियाँखाँको स्वदेश गये हुए केवल पाँच ही महीने हुए हैं। इतने में खबर आई है कि वे पीठके फोड़ेसे २० दिन बीमार रहकर २३ तारीखको अचानक अहमदाबादमें चल बसे। नेटाल और दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागोंमें जो उनके नाम और कामसे परिचित होंगे वे इस शोक समाचारसे दुःखी हुए बिना नहीं रहेंगे। दक्षिण आफ्रिकामें ऐसा समय आता जा रहा है जब देशसेवकोंकी आवश्यकता दिनोंदिन महसूस होगी। ऐसे समयमें श्री आदमजी मियाँखाँ जैसे एक दक्ष और जीवटवाले नेताके अवसानसे जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति करना मुश्किल है। उनका स्वदेशाभिमान और दूसरे मूल्यवान सद्गुण सर्वविदित है। काँग्रेसके कार्यवाहक मन्त्रीके रूपमें तथा बादके सार्वजनिक जीवनमें उन्होंने बुद्धि, शान्ति, तत्परता और आत्मबलिदान आदि सद्गुणोंका जो परिचय दिया वह सब सबक लेने योग्य है। स्वदेश लौटते समय उनके सम्मानमें किये गये समारम्भोंसे उनकी लोकप्रियता प्रकट हुई थी। दक्षिण आफ्रिकाके कष्टोंके लिए भारतमें भी आवाज उठानेका उनका इरादा था। ऐसे लोकोपकारी सज्जनकी केवल ४१ वर्षकी आयुमें मृत्यु हो जानेसे खेद होना स्वाभाविक है। हम हृदयसे चाहते हैं कि मृतात्माके परिवारको शान्ति मिले, तथा उनपर श्रद्धा रखनेवालोंसे अनुरोध है कि वे उनके विशाल सद्गुणोंका अनुकरण करें।
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७
८९. खुदाई कानून
खूनी कानूनकी ताकत देखनेका समय नजदीक आता जा रहा है। पहली अगस्तको सरकार क्या करती है, इसे देखनेके लिए सारे भारतीय चिन्तातर रहेंगे। लेकिन वास्तवमें चिन्ताके बजाय हिम्मतके साथ बैठना चाहिए। खूनी कानूनसे बचनेके लिए दूसरे चाहे जितने दुःख भोगने पड़ें, उन्हें सुख-रूप समझना चाहिए, और हर भारतीयको यही मनाना चाहिए कि “मेरे भाइयोंका दुःख दूर करने के लिए मुझे पहले जेल हो तो भले हो।"
खूनी कानूनके सामने न झुकनेके कारणोंकी तो हम बहुत छानबीन कर चुके हैं। खूनी कानूनका विरोध करके हम खुदाई कानूनको मानते हैं, यह समझने जैसी बात है। खूनी कानूनके सामने झुकनेमें पाप है, उसी प्रकार खुदाई कानूनको भंग करने में पाप है। खुदाई कानूनके सामने झुकनेवाला इस दुनियामें और दूसरी दुनियामें सुख भोगेगा। वह खुदाई कानून कौनसा है? वह है: सुख भोगनेके पहले दुःख भोगना, और चूंकि परमार्थमें स्वार्थ है इसलिए दूसरेके लिए हम आत्मबलिदान करें, दु:ख उठायें। उसके थोड़े उदाहरण लें:
मिट्टी धूल बन जानेपर पानीके साथ मिलकर साग-सब्जी पैदा करती है; और सागसब्जी अपने-आपका बलिदान करके प्राणि-मात्रका पोषण करती है। प्राणी अपना बलिदान करके
[१] पिछले शीर्षकमें 'ता. २०' का उल्लेख है।
- ↑ १.