करते हुए अगस्त महीनेमें जो कुछ हो उसे सहन करनेके लिए हमारे भाई ट्रान्सवालमें तैयार रहें, यह हम अति पवित्र मनसे ईश्वरसे मांगते हैं।
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७
९०. अलीकी भूल
इस बार श्री रिचके पत्रके साथ श्री अलीने न्यायमूर्ति अमीर अलीके नाम जो पत्र भेजा है वह भी आया है। दोनों पत्र पढ़ने और विचार करने योग्य है। इन पत्रोंको प्रकाशित किया जाये या नहीं, हमारे लिए यह प्रश्न था। आखिर विचार करनेपर देखा कि देशहितके लिए हमें उन्हें प्रकाशित कर ही देना चाहिए। यह समय इतना नाजुक है कि किसी व्यक्तिके मनपर क्या असर होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। हमें यही सोचना है कि जनसाधारणका भला किस तरीकेसे हो।
हम मानते हैं कि श्री अलीने न्यायमति अमीर अलीके नाम पत्र लिखनेमें उतावली और भूल की है। समितिकी ओरसे वह पत्र, जिसमें जेल भिजवानेवाली लड़ाई न लड़ने की सलाह दी गई थी, क्यों आया, इसका कारण अब समझमें आ सकता है। श्री अलीके पत्रपरसे समितिने विचार किया कि हममें मतभेद है और यदि मतभेद हो तो कोई भी व्यक्ति, जिसे पूरी बात न मालूम हो, यही सलाह देगा कि हमें जेल भिजवानेवाली लड़ाई छोड़ देनी चाहिए। वास्तवमें कोई मतभेद नहीं था, तब न्यायमूर्ति अमीर अलीको वैसा पत्र लिखनेकी जरूरत नहीं थी। इसके अलावा जनरल बोथासे मिलनेके सम्बन्ध में किसीने लापरवाही नहीं की, बल्कि ब्रिटिश भारतीय संघने पूरी मेहनत की। इतना करनेपर भी जब उन महाशयने मिलनेसे इनकार कर दिया तब उनसे एक लिखित निवेदन किया गया कि भारतीय समाजको माँग स्वीकार को जानी चाहिए।
सारे भारतीय व्यापारी मुसलमान हैं और सभी फेरीवाले हिन्दु, वगैरह टीकाको हम जहरी समझते हैं। ऐसे शब्द श्री अलीकी कलमसे निकलें, इसमें हम कौमकी बेइज्जती देखते है। ट्रान्सवालकी लड़ाई हिन्दू और मुसलमान दोनोंके लिए एक समान है। दोनोंके हक डबते हैं। और विचार करनेपर हम देख सकते है कि व्यापारियोंके बिना यह लड़ाई शोभा भी नहीं देगी। भारतीयोंके पीछे ऐसा खूनी कानून लगा हुआ है कि जितने ज्यादा इज्जतदार उतनी ही ज्यादा मुसीबतें। जिसे इज्जतकी जितनी ज्यादा परवाह है, वह कानून उसके द्वारा उतना ही ज्यादा धिक्कारा जाने योग्य है। अत: हिन्दू-मुसलमानका प्रश्न ही नहीं उठता। इतना ही नहीं, दक्षिण आफ्रिकामें दोनों धर्मोके बीच कोई कड़वाहट नहीं है। कुल मिलाकर सब हिलमिलकर रहते हैं। इस स्थितिमें समितिको, जो उपर्युक्त बातें लिखी गई हैं, उनका भारतीय कौमके लिए हम बहुत ही बुरा परिणाम देखते हैं। इसलिए यह पत्र छापकर तथा उसपर यह टीका करके हम सब भारतीयोंको चेतावनी देते हैं कि जब हमारे लिए स्वतन्त्र होनेका समय आया है तब कोई यह स्वप्नमें भी खयाल न करे कि हिन्दू और मुसलमानोंके बीच फूट है या फूट डालनी है।