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केपके भारतीय

इस विषयकी खुली चर्चा करके हम श्री अलीका दिल दुखाना नहीं चाहते। जिनका उनसे मतभेद हो उन्हें उनपर गुस्सा करने के बजाय उनकी भूलके लिए उनपर दया करनी चाहिए। इसका मुख्य हेतु यह समझना चाहिए कि जो व्यक्ति सार्वजनिक काममें भाग ले उसे एक प्रतिज्ञा करनी होगी कि चाहे जो हो, वह ऐसा काम तो कर ही नहीं सकता जिससे सब लोगोंका नुकसान हो। साथ ही हम श्री अलीको सलाह देते हैं वे अपनी भल ठीक करें।

उपर्यक्त पत्रोंसे हम यह भी देख सकते है कि यदि श्री अलीका पत्र न जाता तो समितिकी ओरसे हमें रोका नहीं जाता। फिर भी समितिकी सलाह इस समय हमारे लिए बेकार है, यह बात हमारे लिए सदा याद रखने योग्य है। रणमें जानेवाले घरमें बैठनेवालोंको सलाह नहीं सुन सकते। हमें अब अपने बलपर जूझना है। यदि यह कानून हमें पापस्वरूप जान पड़ता हो तो हमें समिति या दूसरे कोई भी सलाह दें, हम पाप नहीं करने लगेंगे। हमें हिसाब समितिको नहीं, खुदाको देना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७

९१. केपके भारतीय

केप-संसदका नया चुनाव, सम्भव है, कुछ ही समय में हो जायेगा। केपके काले और गहुँए लोग अपने मताधिकारका किस प्रकार उपयोग करेंगे, इस प्रश्नको चर्चा हो रही है। यह चर्चा सिर्फ केपमें ही नहीं, दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे भागोंमें भी हो रही है। हमें जोकुछ कहना है, वह विशेषकर भारतीय मतदाताओंके लिए है।

हम मानते है कि केपके भारतीय मतदाताओंने केप तथा अन्य जगहोंमें भारतीयोंकी स्थितिमें सुधार करनेका अवसर बहुत बार खोया है। प्रसंग आनेपर यदि मताधिकारका ठीक-सा उपयोग न किया जा सके तो वह अधिकार किसी कामका नहीं। केपके काले लोग और भारतीय लोग यदि अपने मताधिकारकी कीमत समझें तो वे आज भी कई परिवर्तन करवा सकते हैं।

इस सम्बन्धमें पहले तो इतना याद रखना जरूरी है कि काले और भारतीय लोगोंके मत हमेशा एक ही पक्षमें गिरें, ऐसा कोई नियम नहीं है। दोनोंको अलग-अलग प्रकारके हक चाहिए। दोनोंकी लड़ाई भिन्न प्रकारको है। जैसे केपका प्रवासी कानून भारतीय समाजको रोकनेवाला है, उसका काले लोगोंपर कम प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार व्यापारका कानून केवल भारतीयोंपर ही असर करता है। इसके अलावा काले लोगोंकी जन्मभूमि दक्षिण आफ्रिका है, इसलिए उन्हें हमसे ज्यादा अधिकार हैं। १८५८ की घोषणाके कारण तथा भारतीयोंकी सभ्यता चूंकि बहुत पुरानी है इसलिए वे काले लोगोंकी अपेक्षा अधिक दृढ़ताके साथ अधिकार मांग सकते है। वैसे परस्पर लाभ दोनोंको है, इसलिए भारतीय समाज किस प्रकार मत दे, इसपर अलगसे विचार करना है।

दूसरी बात यह याद रखनी है कि मतदाता किसी एक या दूसरे पक्षको मत देने के लिए बँधा हुआ नहीं है। कभी-कभी तो यह होता है कि मत न देकर बहुत जबरदस्त असर डाला जा सकता है। हमें मालूम है कि डर्बनके इने-गिने भारतीय मतदाताओंने एक बार मत