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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बिलकुल न देनेका निर्णय किया था। इसका असर इतना हुआ था कि एक बड़े अधिकारीने उन्हें बुलाकर कुछ आश्वासन दिये थे और उनका पालन भी किया गया था।

उपर्युक्त दोनों बातोंको ध्यानमें रखकर हम केपको स्थितिपर विचार कर सकते हैं। केपमें दो दल हैं। बॉड' या डच, प्रगतिशील (प्रोग्रेसिव) या ब्रिटिश और विदेशी (फॉरेन)। हमें स्वीकार करना होगा कि इन दोनों दलोंमें इस समय तो इतनी समानता है कि कठौते और कुंडे में क्या होगी? दोनों एक ही कूचीसे रंगे गये है। दोनोंमें से किसी को भी काले व्यक्तिके प्रति स्नेह नहीं है। स्वर्गीय श्री रोड्सने जो बचन दिया था उसपर प्रगतिशील दलने पानी फेर दिया है। हम केपके भारतीय समाजको सलाह देते हैं कि वे दोनों पक्षोंके प्रमुखोंसे लिखकर पूछे कि वे प्रवासी कानून तथा व्यापार काननमें अमुक परिवर्तन कर सकते हैं या नहीं। जो बेखटके और प्रामाणिकतापूर्वक साफ-साफ बात कहें, उन्हें मत दिये जायें। किन्तु यदि दोनों स्पष्ट उत्तर देने में आगे-पीछे देखें, व्यक्तिगत रूपमें एक बात कहें और सार्वजनिक रूपमें दूसरी, तो वैसे कपटी लोगोंको कतई बढ़ावा नहीं दिया जाये; और साफ कह दिया जाये कि ऐसी स्थितिमें भारतीय समाज किसोको भी मत नहीं देगा।

इस तरह करनेसे हमें विश्वास है कि भारतीय समाजकी प्रतिष्ठा बढेगी और दोनों में से एक दल, इस बार नहीं तो अगली बार निश्चय ही वचन देगा। हमारी केपके भारतीयोंसे प्रार्थना है कि उन्हें इस बार अपने भलेके लिए ही यह काम करना है। गोरे यदि उनके मित्र हों अथवा वे पाँच-सात भारतीयोंको कुछ अधिकार देना चाहते हैं तो उसकी वे परवाह न करें। कितना और क्या मांगा जाये, इसका विचार दूसरी बार करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७

९२. धर्मपर हमला

पाठशालाओंमें हमें सिखाया जाता है कि अंग्रेजी राज्यमें:

जहर चला गया, वैर चला गया और काला कहर भी चला गया। दूसरी जातिके लोग देशकी जातियोंसे मेलजोल करके इस संसारमें चल रहे हैं। देख लो, रास्ते चलती हुई बेचारी बकरीका भी कोई कान नहीं पकड़ता। हे भारत, यह ईश्वरका उपकार मानकर अब तू खुशी मना।

परन्तु अब इस कविताको निम्न प्रकार बदलकर गाना चाहिए या गा सकते हैं:

विषोंकी भरमार हो गई है और वैर बढ़ता ही चला जा रहा है। दूसरी जातिके लोग देशके लोगोंसे संसारमें दुश्मनी करते चल रहे हैं। देख लो, कोई भी

[१] ऐफ्रिकॉडर बांड।

[२] (१८५३-१९०२), केप कालोनीके प्रधान मंत्री, १८९०-९६।

[३] झेर गयां ने वेर गयां, वळी कालांकेर गया करतार;

पर नातीला जातीला थी, संप करी चाले संसार।

देख विचारी बकरीनो पण, कोई न जाता पफड़े कान:

ऐ उपकार गणी ईश्वरना पण, हरख हवे तु हिन्दुस्तान।
  1. १.
  2. २.
  3. ३.