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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१५७

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धर्मपर हमला

बेचारी बकरीके कान जबरदस्ती पकड़ लेता है। इस सबका विचार करके हे भारत, अब तू हिम्मतके साथ कुछ उपाय कर।।

नेटाल रेलवेके मुख्य प्रबन्धकका जो पत्र हमने देखा है उसपरसे हमें ऐसा विचार आ रहा है। उस पत्रमें मुख्य प्रवन्धकने लिखा है कि अंग्रेजों अथवा गोरे पादरियोंको जैसे रियायती दरपर रेल टिकट दिये जाते हैं वैसी रियायत भारतीय पादरियोंको आइन्दा नहीं दी जायेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय पादरी हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई भी हो तब भी रियायती टिकट नहीं मिलेगा। ट्रान्सवालसे ये और एक कदम बढ़ गये। अब भारतके ईसाई भी गोरे ईसाइयोंसे पृथक् हो गये। इसे हम अच्छा शकुन मानते हैं। क्योंकि ऐसे दुःखों और अपमानोंके कारण हम सारे भारतीय सदा एक-दूसरेसे मिलकर रहेंगे।

एक ओरसे देखनेपर श्री रॉसका पत्र थोथा है। दो-चार भारतीय पादरियोंको रियायती टिकट मिले तो क्या, और न मिले तो क्या? किन्तु दूसरी ओरसे देखें तो यह मामला बड़ा गम्भीर है। दक्षिण आफ्रिकासे भारतीयोंको हर प्रकारसे तिरस्कृत करके निकाल देनेकी जो तजवीज की जा रही है, उसके उदाहरणके रूपमें श्री रॉसके इस पत्रको मानकर उसका पूरे तौरसे विरोध करना चाहिए। भारतीय समाज और भारतीय धर्मोंका अपमान करने में यहाँके गोरे जरा भी आगे-पीछे नहीं देखते।

हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई है कि इस सम्बन्धमें मुस्लिम संघके अध्यक्ष श्री पीरन मुहम्मदने श्री रॉसको पत्र लिखा है और आवश्यक कदम उठाये है। श्री रॉससे सन्तोषप्रद उत्तर आनेकी सम्भावना है। यदि ऐसा हो तो भी उसमें फूलने जैसी कोई बात नहीं।

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी मक्तिकी डोर ट्रान्सवालके भारतीयोंके हाथमें है। वे यदि अपनी टेक बनाये रखकर जोर दिखायेंगे तो श्री रॉस और गोरे लोग भारतीयोंका अपमान करना भूल जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७
 
[] झेर वध्यांने वेर वध्यां, वली कालांकेर वध्या करतार;

पर नातीला जातीला थी, वेर करी चाले संसार।
देख विचारी बकरीनो सहु, जोर करीने पकड़े कान;

ऐवो ख्याल करी हिम्मत थी उपाय कर तु हिन्दुस्तान।
  1. २.