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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

प्रिटोरियाकी सभा

प्रिटोरियामें मंगलवार शामको विशेष सभा की गई थी। उसमें श्री रूज़ वकील भी हाजिर थे। उन्होंने कहा कि जनरल स्मट्स यह जानने के लिए आतुर है कि उनके पत्रका क्या असर पड़ा। उन्हें वहम है कि भारतीय नेता जनरल स्मट्सके पत्र जाहिर नहीं करते। इसलिए सभाकी क्या राय है, यह जाहिर हो तो अच्छा। श्री गांधीने श्री रूजको 'इंडियन ओपिनियन' देकर बताया कि जनरल स्मट्सके पत्रका अर्थ प्रत्येक भारतीयके सामने पेश किया जा चुका है। वह श्री रूजने श्री स्मट्सको बतानेके लिए कहा। इस सभामें श्री गांधीके अलावा जोहानिसबर्गसे श्री ईसप मियाँ और श्री उमरजी सालेजी आये थे।

गांधीने श्री स्मट्सके पत्रका अनवाद करके सुनाया और सभाको सलाह दी कि कोई भी व्यक्ति नये कानूनके सामने हरगिज न झुके।

श्री हाजी हबीबने यह प्रस्ताव किया कि यदि जनरल स्मट्स श्री रूजके पत्र में व्यक्त की गई मांगको स्वीकार नहीं करेंगे तो नया कानून कभी नहीं माना जायेगा। इसके अलावा उन्होंने जनरल स्मट्सके साथका पत्र-व्यवहार प्रकाशित करनेकी सूचना दी। श्री हाजी हबीबके प्रस्तावका श्री सूजने समर्थन किया। श्री अयूब बेग मुहम्मद तथा श्री उमरजीने भी समर्थन किया। श्री रूजने भाषण देते हुए बताया कि कानून स्वीकार किया जाना चाहिए और फिर जो मांग करनी हो वह कायदेसे करनी चाहिए। इतना होनेपर भी श्री हाजी हबीबका प्रस्ताव सर्वानुमतिसे पास हुआ।

सभाने इतना जोर दिखाया है। फिर भी दिन जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे स्थिति जरा गम्भीर होती जा रही है। अन्ततक सारा समाज सावधान रहेगा या नहीं, इस सम्बन्धमें तर्क-वितर्क होता रहता है।

इस समय सब भारतीयोंको एक बात याद रखनी है कि चाहे जितने लोग नया अनुमतिपत्र लें, जिनमें हिम्मत है वे तो कभी न लें।

स्मट्सका इरादा

श्री स्मट्सने उत्तरमें कहा है कि तटवर्ती अनुमतिपत्र कार्यालयकी जरूरत है। इतने दिन तक अंग्रेज सरकार हस्तक्षेप करती थी इसलिए पुराने डच कानूनोंपर अमल नहीं होता था। अब अंग्रेज सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अत: जो 'कुली' एक दफा बाहर जायेगा वह वापस न आ सके, इसके लिए तटवर्ती कार्यालयकी जरूरत है। इस तरहके जवाब होते हुए भी भारतीय समाज नये कानुनको स्वीकार करता है, तो उससे बुरा और क्या होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९०७