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९६. पत्र: उपनिवेश-सचिवको

प्रिटोरिया
जुलाई २७, १९०७

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव

प्रिटोरिया महोदय,

मेरी समितिको यह जानकर खेद हुआ है कि सरकारी कर्मचारी एशियाइयोंके पंजीयनके आवेदनपत्र बहुत रातमें और व्यक्तिगत दुकानों या दूसरी जगहोंपर ले रहे हैं। मेरी समितिको यह भी पता चला है कि यह तरीका सरकारको दी गई इस आशयकी दर्खास्तोंकी ख्तियार किया गया है कि जो ब्रिटिश भारतीय अधिनियमके अन्तर्गत आवेदन देना चाहते हैं उनको मारपीट आदिकी धमकी दी जाती है।

मेरी समिति जहाँतक जानती है, समाजके किसी भी उत्तरदायी सदस्यने ऐसी कोई धमकी नहीं दी है। समितिकी कार्रवाई अधिनियमकी धाराओंको स्वीकार करने में जो अप्रतिष्ठा और हानि है उसको बताकर जोरदार प्रचार करने तक ही सीमित है।

यह स्वीकार किया जायेगा कि स्वयंसेवकोंने सेवाव्रत ही निभाया है। मेरी समितिने खल्लमखल्ला और जोरदार शब्दोंमें ब्रिटिश भारतीयोंको सचित कर दिया है कि अगर कोई सदस्य आवेदन देना चाहे तो उसे किसी प्रकारकी हानि न पहुँचाई जायेगी, बल्कि यदि वह चाहेगा तो, पंजीयन कार्यालय तक सुरक्षित पहुंचा दिया जायेगा।

समितिकी विनम्र रायमें, उन भारतीयोंने, जिन्होंने गुप्त रूपसे और रातमें आवेदन दिये हैं, ऐसा इसलिए किया है कि जिस बातको, समाजके दूसरे सदस्योंके साथ-साथ, उन्होंने भी अपने सम्मानके विरुद्ध माना है, उसको वे दूसरे ब्रिटिश भारतीयोंसे छिपा सकें।

मेरी समितिकी विनम्र रायमें, दफ्तरके वक्तके बाद और निजी दूकानोंमें गुप्त रूपसे पंजीयन कराना, यदि गैरकानूनी न भी हो, तो भी, गौरवास्पद नहीं माना जा सकता। कुछ भी हो, मेरी समिति सरकारको सादर आश्वासन देती है कि भारतीय समाज जिस संघर्षको अपने जीवन और मृत्युका संघर्ष मानता है, उसमें डराने-धमकानेका या ऐसे उपायोंका, जो किसी भी तरह निन्दनीय माने जायें, आश्रय लेनेका कोई विचार नहीं रखता।

आपका, आदि,
हाजी हबीब
अवैतनिक मन्त्री,
ब्रिटिश भारतीय समिति

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९०७

[१] इसे अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था।

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