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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१६५

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९७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[जुलाई २९, १९०७]

नया कानून: घोर विश्वासघात

मुझे लगता है कि जितने खेदके साथ मैं यह चिट्ठी लिख रहा हूँ, उतने खेदसे मैंने शायद ही कोई चिट्ठी लिखी हो। मैं जो खबर देनवाला हूँ वह दूं या नहीं, यह भी विचारणीय प्रश्न बन गया है। फिर भी मैं समझता हूँ कि, यदि हमें सत्यकी रक्षा करनी हो और बहादुर बनना हो तो प्रिटोरियाके भारतीय समाजमें जो एक घटना हो गई है उसका लेखा मुझे लेना ही होगा।

जुलाईका अन्तिम सप्ताह दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय समाजको बहुत याद रहेगा। जहाँ यह आशा थी कि हमारे जीतनेका समय साफ आ गया है, वहाँ भारतीय समाजके साथ विश्वासघात हुआ है और यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि जीत होगी भी या नहीं। बधवार तारीख २४ को रातको १० बजेके बाद प्रिटोरिया स्टेशनपर अनायास इस धोखेकी खबर मिली। श्री गांधी आनेवाले थे और उन्हें मिलनेके लिए श्री काछलिया, श्री व्यास, श्री बेग और दूसरे भारतीय हाजिर थे। उन्हें पता लगा कि श्री खमीसाकी दूकानमें कुछ गड़बड़ी हो रही है। उसमें गोरे हैं, और दूकानके पास खुफिया पुलिस है। यह खबर पाते ही उपर्युक्त सज्जनोंने सोचा कि श्री खमीसाकी दूकानका दरवाजा खटखटाया जाये और यदि दरवाजा खुले और वहाँ नये कानूनके सामने झुकनेकी कोई कार्रवाई हो रही हो तो उन्हें समझाया जाये। श्री गांधीने दरवाजा खटखटाया। श्री व्यासने भी खटखटाया। एक व्यक्तिने आकर पूछा कौन है ? श्री गांधीने जवाब दिया और अन्दर आनेकी इजाजत मांगी। दरवाजा किसीने नहीं खोला। इस बीच खुफिया पुलिसका एक आदमी आया और उसने कुछ पूछताछ शुरू की। श्री बेगने आवेशसे जवाब दिया। फिर श्री गांधीने उससे बात की। इसपर उसने कहा: “आप कानून जानते हैं। जो ठीक हो वह कीजियेगा।" यों कहकर वह चला गया। कुछ मिनट बाद वह और दूसरे दो अधिकारी आये। इस बीच श्री व्यास श्री हबीबको लेने गये थे। खुफियाने उपर्युक्त लोगोंमें से प्रत्येकपर हाथ रखकर वहाँसे रास्ता नापनेको कहा। सब चले गये। सब समझ गये, श्री खमीसाकी दूकानमें जरूर कुछ दगा शुरू हुआ है।

सारी रात बहुतेरे भारतीय जागते रहे। गुरुवारको सवेरे सारे भारतीय समाजमें खलबली मच गई। गाँव-गाँव पत्र और तार भेजे गये। कहा जाता है कि श्री खमीसाकी दूकानमें आधी रातको करीब बीस व्यक्तियोंने अपने हाथ और मुंह काले करके भारतीय समाजको बट्टा लगाया है।

इसमें दोष किसका?

यह प्रश्न सब भारतीयोंके मनमें उठेगा। मैं स्वयं मानता हूँ कि जिन्होंने पंजीयनके लिए अर्जी दी है, उन्हें हम निर्दोष नहीं कह सकते। नया कानून अच्छा है और उसके