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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१६७

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जोहानिसवर्गकी चिट्ठी

"दया धर्मको मूल है"

इस प्रसिद्ध दोहेकी याद करके उन लोगोंके साथ दया बरतनी चाहिए जिन्होंने भारतीय समाजके साथ विश्वासघात किया है। हमारे मनमें रोष आना स्वाभाविक है। किन्तु उस रोषको दबाकर हमें यही समझना चाहिए कि उन्होंने अज्ञानवश काला दाग लगाया है। इसके अलावा हमें यह भी याद रखना है कि इस लड़ाईमें हमने किसी भी भारतीयपर हाथ उठाया अथवा किसीको नकसान पहुंचाया तो उससे सारी लडाईको धक्का पहुँचेगा। इस विचारके सिलसिले में मुझे खेदपूर्वक बतलाना होगा कि श्री खमीसाने अपने प्रत्येक भारतीय देनदारके नाम सन्देश भेजा है कि यदि वह सोमवारको सवेरे गुलामीके नये पट्टेके लिए अर्जी न दे तो उसपर जो रकम निकलती हो वह चुका दे। नहीं तो उसपर तत्काल समन्स जारी किया जायेगा। इससे खलबली मच गई है। किन्तु श्री ईसप मियाँ, श्री अस्वात, तथा श्री उमरजीने श्री खमीसाको समझाया, इसलिए उन्होंने अपनी सूचना वापस लेना स्वीकार कर लिया है।

सहानुभूतिके तारोंकी वर्षा

प्रिटोरियामें प्रमुख भारतीयोंके नाम तार आया ही करते हैं। कोई-कोई विश्वासघातकी सख्त टीका करते हैं। श्री पारसी रुस्तमजी तथा डर्बनके स्वयंसेवकोंने हर स्वयंसेवकको बधाईके तार भेजे हैं। नाइयोंकी ओरसे नाइयोंके नाम दृढ़ रहने के लिए तार आये हैं। उसी प्रकार बलेर, टौंगाट, डेलागोआ-बे, डंडी, लेडीस्मिथ, एस्टकोर्ट, केप टाउन आदि विभिन्न स्थानों और विभिन्न व्यक्तियोंकी ओरसे तार आते ही रहते हैं।

आज सोमवारकी शाम तक किसी भी भारतीयने अनुमतिपत्र कार्यालयसे अनुमतिपत्र नहीं लिया।

हमीदिया सभा

जोहानिसबर्गकी हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके सभाभवनमें रविवारको एक भारी सभा हई थी। उसमें बहत उत्साह दिखाया गया था। श्री पोलकने सारी बातें समझाई। इमाम अब्दुल कादिर बावजीर सभापति थे। मौलवी हाजी अब्दुल मुख्तारने एक लम्बा और प्रभावशाली भाषण दिया। उपर्युक्त सभामें पंजीयनपत्र लेनेवालोंके कामको दगाबाजी और फन्देबाजी कहकर उसकी बहुत ही छीछालेदर की गई। श्री पोलकने बताया कि सम्भव है अब जोहानिसबर्गकी बारी आयेगी, इसलिए हमें स्वयंसेवक नियुक्त कर देना चाहिए। फलतः कौन-कौन लोग स्वयंसेवक बननेको तैयार हैं, यह पूछा गया। इसपर नवाबखान जमालदार सबसे पहले आगे आये और उन्होंने जोशीला भाषण दिया। बादमें निम्नलिखित नाम दिये गये:

मुहम्मद हुसैन, मीर अफजुलखान काबुली, नुरुद्दीन, इमामुद्दीन, जामाशाह, साहेबदीन, मूसा मुहम्मद, अलीभाई मुहम्मद, ईसप दासू, अलीभाई इस्माइल, उमर हसन, मूसा आनन्दजी, रामलगन, अली उमर, इस्माइल मुहम्मदशाह, मुहम्मद इस्माइल, सुलेमान आमद सूरती। इतने नाम आ जानेके बाद यह घोषित किया गया कि और नाम नहीं चाहिए। सभामें बहुत उत्साह था।