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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१६८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मद्रासियोंकी सभा

मद्रासियोंने उसी दिन शामको सभा की। उन्हें भी श्री पोलकने ठीक तरहसे समझाया। लोगोंमें बहुत उत्साह और जोश है। सब यही कहते है कि दूसरे लोग कुछ भी करें, वे स्वयं तो नये पंजीयनपत्र लेकर कलंक लगाना कभी स्वीकार नहीं करेंगे। स्वयंसेवकोंके रूपमें सभामें श्री पी० के० नायडू, डब्ल्यू० जे० आर० नायडू, एस० मैथ्यूज़, एस० लिंगम्, डी० एन० नायडू, एस० कुमार स्वामी, एस० वीरासामी, तम्बी नायडू, एस०पी० पडियाची, आर० के नायडू, आर० दण्डपाणि, के० के० सामी, के० एन० दादलानी, जे० के० देसाई, वगैरह आगे आये थे।

डर्बनसे आनेवालोंको चेतावनी

फोक्सरस्टसे एक भाईने सूचित किया है कि नेटालकी ओरसे आनेवाले लोगोंके पंजीयनपत्र व अनुमतिपत्र अधिकारी ले लेते हैं और फिर लोगोंसे कहते हैं कि वे अपने अनुमतिपत्र प्रिटोरियासे ले लें। यह विलकुल अनुचित है, और लोगोंको खर्च में डालनेवाला तथा उन्हें अनुमति कार्यालयमें जानेके लिए मजबूर करनेवाला है। अतः सभी भारतीयोंको सूचना दी जाती है कि फिलहाल ट्रान्सवालमें कोई न आये। उपर्युक्त बात नये कानूनसे निकलती है। इसपरसे नये कानूनकी बारीकियोंपर विचार करना जरूरी है।

फ्रीडडॉर्पके भारतीय

फ्रीडडॉर्प अध्यादेश तुरन्त नहीं लागू किया जायेगा इतना तो निश्चित है। किन्तु यह न समझा जाये कि इससे भारतीयोंको निश्चित लाभ हुआ है। क्योंकि वह अध्यादेश गोरे साहबोंको पसन्द नहीं है। इसके द्वारा जो अधिकार प्राप्त हो रहे हैं उतने पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए अधिक माँगते हैं। वे अधिकार सरकारने देने स्वीकार किये है। इसलिए अध्यादेश नया बनेगा। उसमें भी भारतीयोंके अधिकार सुरक्षित नहीं है। तूतीको आवाज सुननेवाला कोई है ही नहीं। फ्रीडडॉर्पके डच गरीब हैं, फिर भी उन्हें निर्वाचन अधिकार है, और वे शमशेर बहादुर हैं। अत: उनके लिए सब कुछ किया जायेगा। भारतीयोंको मताधिकार भी नहीं है। शमशेर तो देखी भी नहीं होगी। किन्तु यदि वे हिम्मतके साथ खूनी एशियाई अधिनियमको जेलरूपी अग्निमें जला दें तो उनकी कीमत जरूर हो सकती है। नहीं तो भारतीयोंके हक राम नाम बोल जायेंगे इसमें मुझे तो जरा भी शक नहीं।

लोकसभामें एशियाई कानून

स्थानीय अखबारों में ऐसा तार छपा है कि बड़ी संसदमें सर विलियम बुलने ट्रान्सवालके भारतीयोंके सम्बन्धमें प्रश्न पूछा था। उत्तरमें श्री चचिलने सूचित किया कि ऐसा मालूम हुआ है कि पंजीयनमें अंगुलियोंकी निशानीके सिवा कोई चारा नहीं है। लॉर्ड एलगिनने ट्रान्सवालके रुखपर खेद प्रकट किया, किन्तु उन्होंने बताया कि ट्रान्सवालकी ओरसे यह हो जानेके बाद कि शिनाख्तके इस तरीकेमें आपत्ति करने जैसी कुछ बात नहीं है, मुझे नहीं लगता कि मैं फिरसे विचार करने के लिए दबाब डाल सकूँगा।

लॉर्ड एलगिनने खेद व्यक्त किया इससे साफ मालूम होता है कि वे स्वयं इस कानूनको सख्त मानते हैं। अतः जब भारतीय जेल जायेंगे, उनकी सहानुभूति भारतीयोंकी ओर रहनी चाहिए।