सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३९
भाषण: प्रिटोरियामें

रेलवेमें तकलीफ

ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक मन्त्री श्री पोलकके हस्ताक्षरसे निम्नलिखित पत्र रेलवे अधिकारीके पास भेजा गया है:

संघके भूतपूर्व अध्यक्ष श्री अब्दुल गनी और श्री गुलाम महमदको एक तार मिला था। इसलिए जरूरी कारणसे उन्हें कल ४-४० को रेलसे प्रिटोरिया जाना था। किन्तु उन्हें टिकट देनेसे इनकार कर दिया गया। मेरा संघ इसका निश्चय करनेको आतुर है कि कहीं रेलवे विभाग भारतीय समाजके आम हकोपर अब विशेष अंकुश तो नहीं लगाना चाहता? इस सम्बन्धमें जाँच पड़ताल करनेकी कृपा करें।

रेलगाड़ियोंकी तकलीफोंका यह ताजा उदाहरण साफ बताता है कि अधिकारियोंकी आँख खोलनेके लिए किसी भी भारतीयको जेल जानेका अवसर हाथसे नहीं छोड़ना चाहिए। जबतक यह न दिखा दिया जायेगा कि भारतीयों में पानी है तबतक, सम्भव है, ये सारे कष्ट दिनोंदिन घटने के बजाय बढ़ते ही रहेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९०७

९८. भाषण: प्रिटोरियामें

[प्रिटोरिया
जुलाई ३१, १९०७]

श्री गांधीने कहा कि श्री हॉस्केनने अध्यादेशके बारेमें बहुत-सी बातें समझाई हैं। उन्होंने इस संकटके समय भारतीयोंके साथ सहानुभूति भी प्रकटकी है। परन्तु उनका खयाल है कि यद्यपि हमारे संघर्षका आरम्भ सही विचारोंसे हुआ है, तथापि हम गुमराह कर दिये गये हैं। हमें अध्यादेशको मान लेना चाहिए; अर्थात् अध्यादेशके पीछे छिपी जबर्दस्ती तथा दसों अंगुलियोंकी छापवाले हुक्मके सामने भारतीयोंको अपना सर झुका देना चाहिए। श्री हॉस्केनने अपनी इस सलाहकी पुष्टिमें बहुत-सी दलीलें दी हैं। उनमें से एक यह भी है कि जो बात अवश्यम्भावी है, उसे मान लेना चाहिए। श्री गांधीने आगे कहा : मैं इस अवश्यम्भावी' बातकी दलीलको लेकर ही कुछ कहना चाहता हूँ। मेरा खयाल है और मैं इस बातको बहुत गहराईसे महसूस करता हूँ कि न तो श्री हॉस्केन और न पश्चिमी जातिका कोई सदस्य यह समझ सकता है कि पूर्वके मानसमें 'अवश्यम्भावी' का वास्तविक अर्थ क्या है, और यह बात में अत्यन्त नम्रताके साथ कह रहा हूँ। श्री हॉस्केनने हमें बताया है कि एशियाई पंजीयन कानूनके पीछे गोरे निवासियोंके लोकमतका

[] एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र देनेकी अन्तिम तारीख ३१ जुलाईको प्रिटोरियामें सारे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी एक सभा हुई थी। गांधीजीके भाषणकी तार द्वारा भेजी गई रिपोर्ट ३-८-१९०७ के इंडियन ओपिनियनमें छपी थी यह उसकी पूरी रिपोर्ट है।

[] विलियम होस्केन जनरल बोथाके अनुरोधपर सभामें आये थे और उन्होंने भारतीयोंसे कहा था कि सरकार अध्यादेशको लागू करनेकी नीतिपर दृढ़ है।

[] देखिए “श्री हॉस्केनकी अवश्यम्भावी", पृष्ठ १५१-५२।

  1. १.
  2. २.
  3. ३.