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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१७२

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९९. प्रिटोरियाकी सार्वजनिक सभाके प्रस्ताव

[प्रिटोरिया
जुलाई ३१, १९०७]

प्रस्ताव १: प्रिटोरिया में की गई ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा इस प्रस्ताव द्वारा अत्यन्त खेदके साथ उल्लेख करती है कि भारतीय समाजमें कुछ ऐसे लोग पाये गये हैं, जिन्होंने अपने आपको और अपनी परम्पराओंको बिलकुल भुला दिया है और जो, भलीभाँति यह जानते हुए भी कि एशियाई कानून संशोधन अधिनियमका पालन करना कितना अपमानास्पद है, पहले गुप्त रूपसे और फिर खुल्लमखुल्ला, उसके अन्तर्गत प्रमाणपत्रोंके लिए आवेदन करते हैं।

प्रस्ताव २: प्रिटोरियामें की गई ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा एशियाई कानून संशोधन अधिनियमके अधीन न होनेपर और उसके अधीन न होनेके गम्भीर परिणामोंका सामना करनेपर प्रिटोरियावासी भारतीयोंकी भारी बहुसंख्याको बधाई देती है। और जिन साहसी भारतीयोंने इस अधिनियमकी धाराओंके सम्बन्धमें समाजके सदस्योंको सच्ची जानकारी देनेका पुण्यकार्य करके अन्याय और अत्याचारका ऐसा उल्लेखनीय सामना करनेकी स्थिति सम्भव बना दी है, उनको भी बधाई देती है।

प्रस्ताव ३: प्रिटोरियामें की गई ब्रिटिश भारतीयोंकी इस सार्वजनिक सभाको नम्र सम्मतिमें अधिनियम अपने अभीष्ट उद्देश्यकी सिद्धिके लिए अनावश्यक है। इसलिए सभा प्रार्थना करती है कि सरकार कृपा करके अध्यक्षके भाषणमें उल्लिखित स्वेच्छया पुनः पंजीयनके प्रस्तावको स्वीकार कर हमारे समाजको इस अधिनियमके आगे नहीं झकनेसे होनेवाले कष्टमें न डाले।

प्रस्ताव ४: प्रिटोरियामें की गई ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा इस प्रस्ताव द्वारा अध्यक्षको अधिकार देती है कि वे पहलेके तीन प्रस्ताव सरकारको भेज दें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९०७
 

[] यद्यपि इन प्रस्तावोंको भारतीय समाजके विभिन्न प्रवक्ताओंने प्रस्तुत और अनुमोदित किया था, फिर भी यह स्पष्ट है कि ये गांधीजीने तैयार किये थे।

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