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१०३. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[अगस्त ५, १९०७]

पीटर्सबर्गपर बला

अनुमतिपत्र कार्यालय रूपी बला पीटर्सबर्ग गई है। इस पत्रके छपते-छपते मालूम हो जायेगा कि पीटर्सबर्गके भारतीय सिंह हैं या सियार। यह पत्र सोमवारको लिख रहा हूँ, फिर भी मैं मानता हूँ कि वे सिंह है। अनुमतिपत्र कार्यालय केवल ७ तारीखसे १० तारीख तक गुलामीका पट्टा देनेके लिए पीटर्सबर्ग में रहेगा। यह मालूम होते ही वहाँ के नेता प्रिटोरिया जा पहुँचे। अत्यन्त जागरूक सेक्रेटरी श्री हाजी हबीब जो कामसे जोहानिसबर्ग आये हुए थे तत्काल वापस प्रिटोरिया गये और उन्होंने पीटर्सबर्गके नेताओंको उत्साह दिलाया। उन्होंने बीड़ा उठाया है कि पीटर्सबर्ग में अनुमतिपत्र कार्यालयका बिलकुल बहिष्कार होगा।

पीटर्सबर्गमें बला क्यों गई?

यह प्रश्न सबके मनमें उठेगा। मुझे खेदपूर्वक कहना चाहिए, इसमें दोष पीटर्सबर्गके भारतीय भाइयोंका है। वे ३१ जुलाईकी प्रसिद्ध सार्वजनिक सभामें नहीं आये। उनका भेजा हुआ तार कमजोर था और उस दिन जहाँ सारे ट्रान्सवालकी दुकानें-श्री खमीसा की दूकान भी-बन्द रहीं, वहाँ पीटर्सबर्गके भारतीयोंकी दूकानें खुली थीं। इससे सामान्यतः सरकारने अनुमान लगाया कि पीटर्सवर्गके भारतीय बहुत आसानीसे गलेमें गुलामीकी जंजीर डाल लेंगे और खूनी पट्टारूपी पंजीयनपत्र ले लेंगे। इसके अलावा चूंकि श्री खमीसा और हाजी इब्राहीमने मेमन लोगोंके नामपर बट्टा लगाया है और, दूसरे, पीटर्सबर्ग में मेमन लोगोंकी बस्ती है, इसलिए सरकारने सोचा कि पीटर्सबर्गमें उनका गोला-बारूद कामयाब हो जायेगा और भारतीय स्वतन्त्रताका किला पीटर्सबर्गमें ढह जायेगा।

किन्तु पीटर्सबर्गकी जमात श्री खमीसा तथा हाजी इब्राहीमसे आदर्श ग्रहण करेगी, यह मानने में सरकारने भूल की है। मैं मानता हूँ कि ये दोनों भारतीय भी अब पछताते हैं। उनके नये पंजीयनपत्र उन्हें भारी पड़ गये हैं। यद्यपि भारतीय उनसे सम्बन्ध विच्छेद नहीं कर रहे हैं और न वे उन्हें सताते हैं, फिर भी वे अब लज्जित हो गये हैं और उन्हें लोगोंके कड़वे शब्द सुनने पड़ते है। इसलिए किसी भारतीयकी यह हिम्मत नहीं कि कोई उनका अनुकरण करे। इसके अलावा जाहिर तौरपर तो वे यही कहते दिखाई देते हैं कि “हमने तो हाथ और मुंह काले किये किन्तु हमारे जैसा दूसरे भारतीय न करें।"

प्रिटोरियाको रियायत

पीटर्सबर्गके नोटिसमें सरकारने यह भी कहा है कि प्रिटोरियाके भारतीयोंको भी वहाँ नये पंजीयनपत्र लेनेकी छूट है। इसे मैं बन्धन मानता हूँ। लालच बुरी चीज है। नये पंजीयनपत्र लेना मैं अपराध मानता हूँ। प्रिटोरियाके भारतीयोंको इस अपराधमें फंसानेके लिए सरकारने जो दरवाजा खोला है उसे छूट मानना गलत है। यह तो एक फन्दा है। मैं तो विश्वासपूर्वक मानता हूँ कि उस प्रलोभनमें फंसनेके लिए कोई भी भारतीय प्रिटोरियासे नहीं जायेगा।

७-१०