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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करीम जमालका मुकदमा

करीम जमालके मुकदमेसे भारतीय लोग नये कानूनके प्रति और भी ज्यादा सतर्क हो गये हैं। उसके सामने झुकना उन्हें नींद बेचकर जागरण मोल लेनेके समान मालूम हुआ है। श्री करीम जमालका मुकदमा वापस ले लिया गया है। सरकारी वकीलने स्वीकार किया है कि यह मुकदमा भूलसे दायर हुआ था। इससे श्री करीम जमालको क्या लाभ? उन्हें तो तकलीफ उठानी ही पड़ी और धनकी बरबादी भी हुई। इस बरबादी और मुसीबतसे तंग आकर उन्होंने पंजीयनकी अर्जी वापस ले ली है। (इस सम्बन्धमें पंजीयकके नाम लिखा हुआ पत्र दूसरी जगह दिया गया है। वह देखिए)।

इस पत्रसे सबको चेत जाना चाहिए कि यह कानून गरीब आदमीपर कितनी मुसीबत ढा सकता है।

एक गोरेकी निशानी लगानेके विरुद्ध लड़ाई

एक गोरेको चोरीके अभियोगमें गिरफ्तार किया गया है। जेलका कानून ऐसा है कि जो भी व्यक्ति जेल जाये, वहाँ पुलिसको उसकी अंगुलियोंकी निशानी लेनेका अधिकार है। इस अधिकारके कारण पुलिसन गोरसे जलम अंगुलियोकी निशानी माँगी। गोरेने देनसे इनकार किया। उसे मजिस्ट्रेटके सामने खड़ा किया गया। फिर भी गोरेने निशानी लगानेसे साफ इनकार कर दिया। कानूनमें जबरदस्ती हाथ दबाकर निशानी लगवानेकी सत्ता तो है नहीं। इसलिए मजिस्ट्रेटने उस गोरेको तीन दिन अंधेरी कोठरीमें बन्द रखनेकी सजा दी। वह उसने बहादुरीसे भोगी, किन्तु अँगुलियोंकी निशानी देने से इनकार किया।

लड़ाईमें पैसेकी सहायता

वॉश बैंकसे श्री भटने संघको लिखा है कि वहाँ भारतीयोंमें बड़ी हिम्मत है और वे चन्दा उगाह रहे हैं। कोई जेल जायेगा तब यदि मदद की आवश्यकता हुई तो देंगे। यह खबर बहुत ही सन्तोषजनक है। मुझे इस सम्बन्धमें कहना चाहिए कि नेटालमें जितना धन इकट्ठा हो वह कांग्रेसके मन्त्रीको भेज दिया जाये। और इसी प्रकार जहाँ भी चन्दा जमा हो, वह वहाँके संघको भेज दिया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपने पास या गाँवमें ही किसी नेताके पास चन्देकी रकम रखे रहेगा तो आवश्यकताके समय उसे पहुँचाना कठिन हो जायेगा। ट्रान्सवालमें एक ही जगहसे पैसा माँगना पड़े-ऐसी व्यवस्था होना जरूरी है। इस समय किसीको इसम न बड़प्पन मानना चाहिए और न उसकी अपेक्षा रखनी चाहिए, बल्कि सबको अपना-अपना फर्ज अदा करना चाहिए।

सार्वजनिक सभा

प्रिटोरियाकी सार्वजनिक सभा बहुत ही अच्छी रही। कह सकते हैं कि एम्पायर नाटकघरकी और गेइटी नाटकघरकी सभा उसके सामने कुछ नहीं थी। इसके अलावा वह चंकि मसजिद जैसे पवित्र स्थानके मैदानमें हुई, इससे जान पड़ता है, भारतीय समाजको विजय निश्चय ही मिलेगी। इस सभामें “प्रिटोरिया न्यूज़" के सम्पादक स्वयं उपस्थित थे, जब कि अन्य सभाओंमें केवल संवाददाता ही आते थे। पहली दो आम सभाओंमें यहाँके संसद-सदस्य नहीं थे।

१. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।