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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

हॉस्केनकी उपस्थिति

इस सभामें प्रसिद्ध संसद-सदस्य श्री हॉस्केन आये थे। श्री हॉस्केनके भाषणसे हमें उत्साहित होना चाहिए। उन्होंने जो सीख दी है उसके अलावा वे और कुछ कह ही नहीं सकते। किन्तु वे इसलिए आये कि उन्हें जनरल बोथा, जनरल स्मट्स और श्री हलने भेजा था। इससे मालूम होता है, सरकारपर जुलाई महीनेके कामका प्रभाव पड़ा है। दो पक्ष लड़ते हैं तब सामान्यतः अन्ततक दोनों अपनी-अपनी तरफ खींचते है। उसमें जिसका पक्ष सच्चा होता है और जो अन्ततक जोर दिखाता है वह विजयी होता है। अतः सरकार यदि यह सन्देश भेजती है कि कानूनमें संशोधन बिलकुल नहीं होगा और स्वेच्छया पंजीयनकी बात स्वीकार नहीं की जायेगी, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। आजतक हमारी बात कोई नहीं सुनता था। उसके बदले अब सरकारको सुननेकी इच्छा हुई, इसे विजयकी ओर पहला कदम मानना चाहिए।

दूसरे शुभ शकुन

जैसे मैं मसजिदकी सभा और श्री हॉस्केनकी उपस्थितिको अच्छे लक्षण मानता हूँ, वैसे ही श्री हाजी कासिमकी लाई हुई इस खबरको भी, कि सरकार तत्काल किसीको जेल भेजनेवाली नहीं है, शुभ शकुन मानना होगा। वास्तवमें तो यह बिलकुल बेकार बात है। सरकार जितनी जल्दी हमपर हाथ डालेगी उतनी ही जल्दी फैसला होगा। किन्तु यह खबर सभाके दिन मिली इस संयोगको मैं अच्छा मानता है। सबसे अच्छा शकून तो यह है कि कि ३१ तारीखको सबेरे विलायतसे तार मिला है कि दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति सर हेनरी कैम्बल बेनरमैनसे मिलनेकी तजवीज कर रही है। इस तारसे सबको प्रसन्नता हुई है। सबको सन्तोष हुआ है कि समिति हमें बिलकुल छोड़ देनेवाली तो नहीं है।

रायटरको तार

सभा समाप्त हो जानेके बाद प्रिटोरिया समितिने रायटरको लम्बा तार भेजा तथा एक तार सीधा समितिके नाम भेजा। इसमें लगभग ७ पौंड खर्च हुए। तारके उत्तरमें समितिकी ओरसे सूचना मिली है कि इस प्रश्नपर लोकसभामें बहस की जायेगी और ट्रान्सवालको जो पचास लाख पौंडका कर्ज चाहिए उसके सिलसिलेमें हमारा प्रश्न उठेगा। इससे आशा तो है कि हमें लाभ होगा, किन्तु ऐसी मददपर किसीको ज्यादा भरोसा नहीं रखना चाहिए। इसमें यदि निराशा हो तो आश्चर्यकी कोई बात नहीं। मुख्य बात यह है कि सब-कुछ हमारे बलपर निर्भर है और यह निश्चय मानना चाहिए कि जेलके दरवाजेसे गुजरे बिना हमारा छुटकारा नहीं होगा।

और भी सहायता

श्री मोतीलाल दीवान लिखते हैं कि ट्रान्सवालके भारतीय आत्म-बलिदान करके सेवा करनेको तैयार है। यदि कोई भारतीय जेल जाये तो वे उसके बाल-बच्चोंकी व्यवस्था करने और उसका स्वागत करनेके लिए चार्ल्सटाउन तक जानेको तैयार हैं। ऐसे उदाहरणोंसे हमें बहुत ही मदद मिलती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७