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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१७९

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पत्र: जनरल स्मटसके निजी सचिवको

सुझाई हुई दिशामें किसी सहायताके मिलनेकी बहुत कम आशा है तथापि मुझे सीधा जनरल स्मट्ससे निवेदन करना चाहिए।

मझे विश्वास है कि मैं सरकारकी सेवा करनेके लिए उतना ही उत्सुक हूँ जितना अपने देशवासियोंकी सेवा करनेके लिए। और मैं समझता हूँ कि यह प्रश्न बड़ा महत्त्वपूर्ण है और साम्राज्यके लिए भी महत्त्वका है। इसलिए मैं इसके साथ प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकके संशोधनका एक जल्दी में तैयार किया हुआ मसविदा संलग्न कर रहा हूँ। मेरी विनम्र रायमें इसमें सरकारका दृष्टिकोण पूरी तरहसे आ जाता है और इससे वह लाञ्छन भी मिट जाता है जो, सही या गलत, मेरे देशवासियोंकी रायमें एशियाई कानून संशोधन अधिनियमके आगे झक जानेसे, उनपर लगता है।

मैंने दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिको भेजे हुए जनरल स्मट्सके उत्तरका तारसे प्राप्त सार भेजा है। उन्होंने यह कहनेकी कृपा की है कि भारतीय समाजके नेताओंसे सहयोग करना सम्भव नहीं है, क्योंकि उन्होंने मुकाबला करनेका रुख अख्तियार किया है। मैं आदरपूर्वक कहूँगा कि हमारे रुखमें मुकाबला करनेका भाव नहीं है, बल्कि ईश्वरकी इच्छापर सब कुछ छोड़ देनेकी भावना है। क्योंकि उसके नामपर भारतीयोंने शपथ ली है कि वे अपने पौरुष और स्वाभिमानको नहीं छोड़ेंगे, जिसपर, उनकी रायमें, पंजीयन अधिनियम द्वारा गम्भीर आक्रमण होता है।

मैं आशा करता हूँ कि इसके साथ भेजा हुआ प्रस्ताव उसी भावनासे ग्रहण किया जायेगा जिस भावनासे वह पेश किया गया है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी

[संलग्न पत्र:]

एशियाई पंजीयन अधिनियम सम्बन्धी कठिनाई हल करनेके लिए प्रस्ताव

निवेदन है कि प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक, जो अब भी वापस लिया जा सकता है और संशोधित किया जा सकता है, सम्पूर्ण कठिनाईको नीचे लिखे अनुसार दूर कर सकता है:

१. विधेयकके खण्ड १ में "किन्तु” से “दिये जा चुके हैं" तक छोड़ दिया जाये।
२. खण्ड २ में निम्न बातें जोड़ दी जायें: “वजित प्रवासी" शब्दोंके अन्तर्गत उन एशियाइयोंका समावेश न होगा और उनसे वे पुरुष एशियाई न समझे जायेंगे जो इसकी उपधारा (क), (ख), (ग) और (घ) के अन्तर्गत आते हैं, इसके बावजूद कि इनसे उपखण्ड १ की शर्ते पूरी न हो सकती हों:
(क) कोई भी एशियाई, जिसने नियमानुसार क्षतिपूर्ति और शान्ति-रक्षा अध्यादेश १९०२ या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत दिये गये परवानेके द्वारा या १ सितम्बर १९०० और कथित अध्यादेशके पास होनेकी तारीखके बीच दिये गये परवाने द्वारा, जबतक वह परवाना जाली तौरपर लिया हुआ न हो, उपनिवेशमें आने और रहनेका उचित अधिकार प्राप्त किया हो; व्यवस्था की जाती है कि ऐसे परवानेमें किसी एशियाईको केवल सीमित समय तक इस उपनिवेशमें रहनेका अधिकार बताया गया हो तो वह इस उपखण्डके संशोधनके भीतर परवाना न समझा जायेगा;